विशेष्य का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- दोनों विशेषण उसी तरह दैनिक जैसे कि स्वयं विशेष्य फिर भी तीनों शब्द मिलकर एक ऐसी वस्तु हमारी सम्मुख रखते हैं जिसकी कल्पना बहुत संभव है कई समकालीन पाठक न कर पायें .
- व्याकरण सीखने वाले विधार्थियो के लिए यह कविता उपयुक्त है , कविता में से उन्हें १ ० - १ ० विशेषण और विशेष्य चुनने को कहा जाये तो उन्होंने २ ० - २ ० चुन देने है : - )
- जहाँ पर क्रिया को विशेष रूप से प्रकाशित करने या महत्व देने के लिए साभिप्राय विशेष्य या नाम का कथन किया जाता है वहाँ परिकरान्कुर अलंकार होता है . रचनाकार परिचय:-आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा, बी.ई., एम.आई.ई.,
- जहाँ पर क्रिया को विशेष रूप से प्रकाशित करने या महत्व देने के लिए साभिप्राय विशेष्य या नाम का कथन किया जाता है वहाँ परिकरान्कुर अलंकार होता है . रचनाकार परिचय:-आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा, बी.ई., एम.आई.ई.,...
- ‘ उपनिषद् ' शब्द की व्युत्पत्ति ‘ सद् ' धातु से मानते हैं , जिसका अर्थ है मुक्त करना , पहँचना या नष्ट करना . यह एक विशेष्य है जिसमें ‘ उप ' और ‘ नि ' उपसर्ग और क्विप् प्रत्यय लगे हैं .
- जब विशेष प्रयोजन से विशेषण के द्वारा विशेष्य का कथन किया जाता है तो उसे ' परिकर अलंकार ' कहा जाता है | उदाहरण : १ . सोच हिमालय के अधिवासी ! यह लज्जा की बात हाय | अपने ताप तपे तापों से , तू न तनिक भी शांति पाय ||
- विशेषण विशेष्य के बीच विभक्तियों का समानाधिकरण अपभ्रंश काल में कृदंत विशेषणों से बहुत कुछ उठ चुका था , पर प्राकृत की परंपरा के अनुसार अपभ्रंश की कविताओं में कृदंत विशेषणों में मिलता है जैसे ' जुब्बण गयुं न झूरि ' गए को यौवन को न झूर गए यौवन को न पछता।
- नियम हैकि संज्ञा और सर्वनाम पद की आवश्यकता के अनुसार विभिन्न कारकों और वचनों मेंप्रयुक्त होंगे , विशेषणपद विशेष्य के पहले उसके लिंग का अनुसरण करेंगे , क्रियापद कर्तापद के वचन , लिंग और पुरुष का अनुसरणकरते हुए अपेक्षित काल में प्रयुक्त होंगे और अव्यय पद बिना लिंग आदि का अनुसरणकिए विशेषण की भाँति अपने सम्बन्धित पद के पहले आएँगे।
- ' भूतल पर जल नहीं है ' , इस प्रतीति में घटाभाव से विशिष्ट भितल का ग्रहण होता है इसमें घटाभाव विशेषण है , भूसल विशेष्य है तथा इन दोनों के बीच का संबंध वशिष्ट्य इग्र् यथार्थ प्रतीति में गृहीत इस सम्बन्ध को यदि वस्तुत : नहीं माना जाता तो समवाय सम्बन्ध को वरतुसत् मानने के लिए भी कोई आधार न रह जायेगा।
- नियम है कि संज्ञा और सर्वनाम पद की आवश्यकता के अनुसार विभिन्न कारकों और वचनों में प्रयुक्त होंगे , विशेषण पद विशेष्य के पहले उसके लिंग का अनुसरण करेंगे , क्रियापद कर्तापद के वचन , लिंग और पुरुष का अनुसरण करते हुए अपेक्षित काल में प्रयुक्त होंगे और अव्यय पद बिना लिंग आदि का अनुसरण किए विशेषण की भाँति अपने सम्बन्धित पद के पहले आएँगे।