शक्ति-पूजा का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- इस दृष्टि से देखा जाए तो एडलर-युग से बहुत पहले शक्ति को - शक्ति स्थापन को - जीवन की मूल प्रेरणा दुर्गा सप्तशती में कहा गया लेकिन पावर-लस्ट ( शक्ति-वासना ) शक्ति-पूजा नहीं है।
- दशहरा अथवा विजयादशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाय अथवा दुर्गा पूजा के रूप में , दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है , क्योंकि यह शस्त्र पूजन की तिथि है।
- जैसे-जैसे नवरात्रि के दिनों में रामलीलाएँ और शक्ति-पूजा बाह्याडम्बर , प्रदर्शन और चौंधियाने वाली रोशनी में तब्दील होते गए , वैसे-वैसे राम और भरत हमारे जीवन से दूर होते गए , शक्ति की आराधना दिखावटी होती गई |
- इसके बाद तो मित्र के प्रति , सरोज-स्मृति, प्रेयसी, राम की शक्ति-पूजा, सम्राट अष्टम एडवर्ड के प्रति, भिखारी, गुलाब, लिली, सखी की कहानियाँ, सुकुल की बीबी, बिल्लेसुर बकरिहा, जागो फिर एक बार और वनबेला जैसी उनकी अविस्मरणीय कृतियाँ सामने आयीं।
- शक्ति-पूजा और भारतीय स्त्री : उदय प्रकाश/अनामिका मित्रो, भारत में शक्ति-पूजा की परम्परा और भारतीय समाज में स्त्री की दशा के सन्दर्भ में उदय प्रकाश और अनामिका से बातचीत पर आधारित यह लेख पिछले साल दुर्गापूजा के अवसर पर राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित हुआ था.
- शक्ति-पूजा और भारतीय स्त्री : उदय प्रकाश/अनामिका मित्रो, भारत में शक्ति-पूजा की परम्परा और भारतीय समाज में स्त्री की दशा के सन्दर्भ में उदय प्रकाश और अनामिका से बातचीत पर आधारित यह लेख पिछले साल दुर्गापूजा के अवसर पर राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित हुआ था.
- स्त्री लोरी भी है , प्रभाती भी महाकवि निराला ने जब राम की शक्ति-पूजा लिखी तो उन्होंने जाम्बवान , जो हमेशा से ही प्रबोधन और जागरण के , चैतन्य और नवोन्मेष के प्रतीक पुरुष रहे हैं , से कहलवाया कि हे रघुनन्दन ! तुम शक्ति की मौलिक कल्पना करो।
- आज जब इस प्रातःकालीन वेला में जीवन की सार्थकता और ऊर्जस्विता का बोध हुआ है तो यह अलसाया सूर्य एक भारतीय कवि को अफ्रीका के आदिम राग से जोड़ता हुआ प्रतीत होता है - ‘रुधिर-परमाणुओं के गर्भ-गेह में अनंत शक्ति-पूजा सुरंगों में बजते सहस्र मृदंग प्रबल चुंबक के तरंग।
- इसके बाद तो मित्र के प्रति , सरोज-स्मृति , प्रेयसी , राम की शक्ति-पूजा , सम्राट अष्टम एडवर्ड के प्रति , भिखारी , गुलाब , लिली , सखी की कहानियाँ , सुकुल की बीबी , बिल्लेसुर बकरिहा , जागो फिर एक बार और वनबेला जैसी उनकी अविस्मरणीय कृतियाँ सामने आयीं।
- जब ‘ तुलसीदास ' और ‘ राम की शक्ति-पूजा ' सरीखी उनकी कविताओं का चर्चा हुआ तो मेरा निवेदन यह था कि मैं निराला की ऐसी पुनरुत्थानवादी , वर्णाश्रमधर्मी , मृदु-हिंदुत्ववादियों के द्वारा इस्तेमाल की जा सकने वाली रचनाओं को सराह नहीं सकता और उनके पाठ्यक्रमों में रखे जाने के सख्त खिलाफ हूं।