शुभग्रह का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- कुछ अन्य ज्योतिर्वेदो के अनुसार ग्रहो के वक्रत्व का शुभाशुभ प्रभाव जन्मकुण्डली के अनुसार होता है , इसमे शुभग्रह व पापी ग्रहो का पहले वाला सिद्धान्त मान्य नही है .
- 19 . मकर या कुम्भ राशि का सूर्य सातवें हो या शुभग्रह त्रिक भाव में हों और क्रूर ग्रह सूर्य , मंगल व शनि से दृष्ट होंतो जातक अन्धा होता है।
- जिस व्यक्ति कि कुंडली में सप्तमेश उच्चराशिगत , स्वाराशिगत या मूल त्रिकोण राशि में हो , सप्तम भाव को कोई शुभग्रह देखते हों तो व्यक्ति कि तरक्की विवाह के बाद निश्चित है।
- यदि लग्न को लग्नेश व शुभ ग्रह देखते हों तथा कार्यभाव को कार्येश और शुभग्रह देखते हों तो कार्य के संबंध में शुभ फल प्राप्त होगा और यदि इत्थशाल हो तो शुभ फल प्राप्त होगा।
- 3 . रोगनाश के योग : त्रिस्फुट यदि सृष्टि खण्ड की राशि , नवांश या नक्षत्र में हो तथा शुभग्रह से युत हो तो रोग का नाश होता है तथा आयु की वृद्धि होती है।
- एक विद्वान् के अनुसार ‘लग्न-अधियोग ' उसे कहते हैं, जब लग्न से 6 ,7, 8 स्थान में शुभग्रह बैठे हों, वे न तो पाप से युक्त हों न द्रष्ट हो और चतुर्थ स्थान में पापग्रह न हो।
- एक विद्वान् के अनुसार ‘लग्न-अधियोग ' उसे कहते हैं, जब लग्न से 6 ,7, 8 स्थान में शुभग्रह बैठे हों, वे न तो पाप से युक्त हों न द्रष्ट हो और चतुर्थ स्थान में पापग्रह न हो।
- 2 . चन्द्र व सूर्य बारहवें हो एवं उस पर शुभग्रह की दृष्टि न पड़े य सिंह राशि का शनि या शुक्र लग्न भाव में बैठा हो तो जातक मध्य अवस्था में अन्धा हो जाता है।
- ७ . किसी जातक की कुंडली में चन्द्रमा किसी ग्रह से युत न हो तथा शुभग्रह भी चन्द्र को न देखते हों व चन्द्र से द्वितीय एवं बारहवें भाव में कोई ग्रह न हो तो जातक दरिद्र होता है।
- 7 . किसी जातक की कुंडली में चन्द्रमा किसी ग्रह से युत न हो तथा शुभग्रह भी चन्द्र को न देखते हों व चन्द्र से द्वितीय एवं बारहवें भाव में कोई ग्रह न हो तो जातक दरिद्र होता है।