संवेद्य का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- एलर्जिक रियेक्संस , चमड़ी -शोथ ( डर-माँ -टा-ई -टिस ) , तथा प्रकाश के प्रति गोदना किये हिस्से की चमड़ी का संवेद्य होना ऐसे में कोई अनहोनी नहीं मानी जायेगी ।
- यह अस्मिता क्या है ? यदि इसे अनुभव-विषय के रूप में लें तो यह अन्य आन्तरविषयों के समान एक विषय होगी और तब यह वर्तमान में संवेद्य, अतीत मेंस्मरणीय और भविष्यत् में संभाव्य होगी.
- इसका परिणाम यह हुआ कि अलग-अलग वर्गों में अलग-अलग प्रकार की भाषा बोली जाती है और साहित्य-समीक्षा के क्षेत्रों में भी कई परिभाषाएँ हो गई हैं जो अपने-अपने व्यवहार करने वालों में परस्पर संवेद्य नहीं होती हैं।
- नाटक के क्षेत्र में इसकी जो प्रतिक्रिया हुई , उससे रचना में स्वानुभूति , आन्तरिकता और इन्द्रिय संवेद्य ज्ञान का महत्त्व बढ़ा ; नाटककार को तो जैसे एक सूत्र मिल गया : ‘ जो है , मैं उसे नहीं देखता।
- कश्मीर को अगर भारतीय राष्ट्र राज्य के जिस्म का सहज और संवेद्य हिस्सा बनाना है तो इलाज के नाम पर कसी हुई वे बड़ी-बड़ी पट्टियां हटानी होंगी जिनकी वजह से उसका हिलना-डुलना मुश्किल होता है और सहज रक्त संचार भी प्रभावित होता है .
- इस प्रयोग को जारी रखते हुए हम गैर दृश्य इंद्रीयानुभवों में से एक अर्थात सपश्र पर चर्चा करेंगे और उसी पर होगा इस सप्ताह का ऐसाइनमेंट- स्पर्श त्वचा से हासिल अनुभव है जो संवेद्य के निकटता की मांग करता है- खूब भौतिक निकटता।
- कश्मीर को अगर भारतीय राष्ट्र राज्य के जिस्म का सहज और संवेद्य हिस्सा बनाना है तो इलाज के नाम पर कसी हुई वे बड़ी-बड़ी पट्टियां हटानी होंगी जिनकी वजह से उसका हिलना-डुलना मुश्किल होता है और सहज रक्त संचार भी प्रभावित होता है .
- इस प्रयोग को जारी रखते हुए हम गैर दृश् य इंद्रीयानुभवों में से एक अर्थात सपश्र पर चर्चा करेंगे और उसी पर होगा इस सप् ताह का ऐसाइनमेंट- स् पर्श त् वचा से हासिल अनुभव है जो संवेद्य के निकटता की मांग करता है- खूब भौतिक निकटता।
- प्रक्रिया में आये हर भाव और विचार को समाजसापेक्ष रुप में उन्होंने गीत में बांधा , इसीलिए , नवगीत में प्रेमसंबंधों की इतनी सुंदर और अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति हो पायी है जिसे यदि कोरे रुमान से जोड़कर सतही नारिये से न देखा जाये तो इस अभिव्यक्ति का रंग बेहद संवेद्य और मार्मिक है।
- / ईमान के संवेद्य पथ पर हम बढ़े / चाबुक हमें उतने पड़े / और जब चिल्ला उठे हम चीख़कर / उतने नसीहत-केंकड़े / हमको ज़बर्दस्ती खिलाये ही गये दुर्धर / ज़िन्दगी का खूब है गहरा चक्कर ! ' - काँप उठता दिल : रचनावली खण्ड - 2 , पृष्ठ - 55 - 56 से