सिंहिका का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- ॠग्वेद [ 5 ] के अनुसार असूया ( सिंहिका ) पुत्र राहु जब सूर्य और चन्द्रमा को तम से आच्छन्न कर लेता है , तब इतना अधेरा छा जाता है कि लोग अपने स्थान को भी नहीं पहचान पाते।
- वह सीधा सुरपति इन्द्र के पास पहुंचा तथा भौहें टेढ़ीकरके क्रोध के साथ बोला-- सुरेश्वर आपने मेरी क्षुधा का निवारण करने केलिए मुझे सूर्य और चन्द्रमा को ग्रसने का अधिकार दिया था , किन्तु अब आपनेयह अधिकार दूसरे को किस कारण दे दिया? सिंहिका पुत्र राहु की क्रोध-युक्त चकित कर देने वाली वाणी सुनकर देवराजइन्द्र उसका मुख निहारने लगे.
- राहु सिंहिका राक्षसी के पुत्र हैं तथा इनके पिता विप्रचिति सदैव आसुरी संस्कारों से दूर रहे , साथ ही समुद्र मंथन के समय अमृतपान करने के कारण इन्हें अमरत्व एवं देवत्व की प्राप्ति हुई, तभी से शंकर भक्त राहु अन्य ग्रहों के साथ ब्रम्हा जी की सभा में विराजमान रहते हैं इसीलिए इन्हें ग्रह के रूप में मान्यता मिली है।
- राहु सिंहिका राक्षसी के पुत्र हैं तथा इनके पिता विप्रचिति सदैव आसुरी संस्कारों से दूर रहे , साथ ही समुद्र मंथन के समय अमृतपान करने के कारण इन्हें अमरत्व एवं देवत्व की प्राप्ति हुई, तभी से शंकर भक्त राहु अन्य ग्रहों के साथ ब्रम्हा जी की सभा में विराजमान रहते हैं इसीलिए इन्हें ग्रह के रूप में मान्यता मिली है।
- प्राचीन भारतीय आध्यात्मिक ग्रंथों , वेदों व पुराणों में हिरण्यकद्गिापु की पुत्री सिंहिका के पुत्र व इस योग के कारक ग्रह राहु को दानव के रूप में स्वीकारा गया है तो दूसरी तरफ महर्षि भृगु ने अपने '' भृगु सूत्र '' के आठवें अध्याय के ग्यारहवें व बारहवें श्लोक में जन्म कुण्डली में पंचम भाव में स्थित होकर मंगल से दृष्ट राहु को जीवन काल में संतान हानि या अभाव का कारक माना है।
- प्राचीन भारतीय आध्यात्मिक ग्रंथों , वेदों व पुराणों में हिरण्यकद्गिापु की पुत्री सिंहिका के पुत्र व इस योग के कारक ग्रह राहु को दानव के रूप में स्वीकारा गया है तो दूसरी तरफ महर्षि भृगु ने अपने '' भृगु सूत्र '' के आठवें अध्याय के ग्यारहवें व बारहवें श्लोक में जन्म कुण्डली में पंचम भाव में स्थित होकर मंगल से दृष्ट राहु को जीवन काल में संतान हानि या अभाव का कारक माना है।