सुथन्ना का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- उदहारण के लिये , प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े में टाटा-बिरला-अम्बानी आदि की आय के साथ फटा सुथन्ना पहने हरचरना की आय जोड़ कर उसे जनसंख्या से विभाजित कर दिया जाता है .
- स्वतन्त्रता का मतलब हरचरना का फटा सुथन्ना आईये इस परिचर्चा को आगे बढाते हैं और हिंदी के वेहद सक्रीय चिट्ठाकार लोक्संघर्ष सुमन जी पूछते हैं क्या है उनके लिए आज़ादी के मायने ? *
- वहां से जाते समय मुझे किसी कवि की ये पंक्तियाँ याद आ रही थी - ' राष्ट्रगान में बैठा भला वह कौन सा भाग्यविधाता है , फटा सुथन्ना पहिने जिसके गुण हरिच्रना गाता है '
- बकौल खुशदीप गणतंत्र सीनियर सिटीजन बन गया आज जिस पर अपनी बात कहते हुये गिरिजेश राव लिखते हैं-रघुवीर सहाय का ' हरचरना' याद आता है जो 'फटा सुथन्ना' पहने राष्ट्रगान के बोलों में 'जाने किस भाग्यविधाता' का गुन गाता
- कहना न होगा कि जब तक यह हरचरना फटा सुथन्ना पहनने को अभिशप्त रहेगा , ‘ हमारे भारत ' के महाशक्ति-स्वप्न को वैधता नहीं मिल पाएगी ; भले ‘ आपका इंडिया ' कितना भी बड़ा सॉफ्ट पावर बन जाए।
- आधुनिक कवियों में छंद को न छोड़ने वाले कवियों में रघुवीर सहाय भी हैं और उनकी लिखी बहुत सी कविताएँ नागार्जुन की कविता प्रतीत होती है , 'राष्ट्रगीत में भला ये कौन भाग्य विधाता है, फटा सुथन्ना पहने जिसका गुण हर हरणा गाता है.'
- आज अगर महाभारत के युधिष्ठिर जिंदा होते ( गर कभी थे ) तो या वे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद मे ढ़ल चुके होते या फिर मंटो के तौबा टेक सिंह की तरह नो मैंस लैंड में रघुवीर सहाय का ' फटा . सुथन्ना ' पहनकर मारे मारे फिर रहे होते।
- आज अगर महाभारत के युधिष्ठिर जिंदा होते ( गर कभी थे ) तो या वे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद मे ढ़ल चुके होते या फिर मंटो के तौबा टेक सिंह की तरह नो मैंस लैंड में रघुवीर सहाय का ' फटा . सुथन्ना ' पहनकर मारे मारे फिर रहे होते।
- निराला ' मँहगू ' से बतियाये नागार्जुन ' बुद्धू ' को देते रहे समझाईश '' बुद्धू ! तू मोची बनजा , दरजी बनजा '' रघुवीर सहाय ने अपनी कविता में याद किया फटा सुथन्ना पहने ' हरचरना ' धूमिल ने ' मोचीराम ' से की लम्बी बातचीत और ' इत्यादि ' राजेश जोशी के कलम से उतरे काग़ज़ पर
- निराला ‘ मँहगू ' से बतियाये नागार्जुन ‘ बुद्धू ' को देते रहे समझाईश ” बुद्धू ! तू मोची बनजा , दरजी बनजा ” रघुवीर सहाय ने अपनी कविता में याद किया फटा सुथन्ना पहने ‘ हरचरना ' धूमिल ने ‘ मोचीराम ' से की लम्बी बातचीत और ‘ इत्यादि ‘ राजेश जोशी के कलम से उतरे काग़ज़ पर