सूर्यलोक का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- जो प्राणी भारतवर्ष में रहकर रविवार , संक्रान्ति अथवा शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को भगवान् सूर्य की पूजा करके हविष्यान्न भोजन करता है , वह सूर्यलोक में विराजमान होता है।
- इस मार्ग पर जाने वाला साधक इन छह मुख्य लोक जिनमें सूर्यलोक , वायुलोक , वरुणलोक , अग्निलोक , इन्द्रलोक व प्रजापति लोक आते हैं इन समस्त लोकों को पार करते हुए वह ब्रह्मलोक में प्रवेश पाता है .
- [ 269 ] मनु [ 270 ] ने लिखा है - पुत्र के जन्म से व्यक्ति लोकों ( स्वर्ग ) आदि की प्राप्ति करता है , पौत्र से अमरता प्राप्त करता है और प्रपौत्र से वह सूर्यलोक पहुँच जाता है।
- जो नारी कार्तिक में एकभक्त रहकर , अहिंसा जैसे सदाचरणों का पालन करती हुई गुड़युक्त भात के नैवेद्य को सूर्य के लिए अर्पित करती है तथा षष्ठी या सप्तमी (दोनों पक्षों में) पर उपवास करती है, वह सूर्यलोक को पहुँचती है और जब पुन:
- पौराणिक ग्रंथों में इसके लिए अनेक विधान हैं - किस की आत् मा केवल चंद्रलोक तक जाती है , किस की सूर्यलोक तक , किस की और भी आगे - स् वयं ब्रह्महृदय तक , जो ज् योतिष शास् त्र में आकाश के एक स् थान विशेष का नाम है .
- श्रीमन्महर्षि वेदव्यासप्रणित वेदान्त-दर्शन के अनुसार जो तीन मात्राओं वाले ओम् रूप इस अक्षर के द्वारा ही इस परम पुरुष का निरन्तर ध्यान करता है , वह तेजोमय सूर्यलोक मे जाता है तथा जिस प्रकार सर्प केंचुली से अलग हो जाता है, ठीक उसी प्रकार से वह पापो से सर्वथा मुक्त हो जाता है।
- श्रीमन्महर्षि वेदव्यासप्रणित वेदान्त-दर्शन के अनुसार जो तीन मात्राओं वाले ओम् रूप इस अक्षर के द्वारा ही इस परम पुरुष का निरन्तर ध्यान करता है , वह तेजोमय सूर्यलोक मे जाता है तथा जिस प्रकार सर्प केंचुली से अलग हो जाता है, ठीक उसी प्रकार से वह पापो से सर्वथा मुक्त हो जाता है।
- श्रीमन्महर्षि वेदव्यासप्रणित वेदान्त-दर्शन के अनुसार जो तीन मात्राओं वाले ओम् रूप इस अक्षर के द्वारा ही इस परम पुरुष का निरन्तर ध्यान करता है , वह तेजोमय सूर्यलोक मे जाता है तथा जिस प्रकार सर्प केंचुली से अलग हो जाता है , ठीक उसी प्रकार से वह पापो से सर्वथा मुक्त हो जाता है।
- संक्रांति काल के दिन समुद्र , गंगासागर, काशी और तीर्थराज प्रयाग में स्नान का विशेष महत्व है, किंतु जो इन तीर्थो में किसी कारण से नहीं जा सकते हैं, उन्हें गंगा आदि सात पवित्र नदियों का स्मरण कर किसी भी नदी या सरोवर में विधिवत स्नान करने का विधान है, जिससे व्रती को तीर्थस्नान का फल तथा सूर्यलोक की प्राप्ति होती है।
- यजुर्वेद प्रथम अध्याय जैसे यह सूर्यलोक , मेघ के वध के लिए , जल को स्वीकार करता है , जैसे जल , वायु को स्वीकार करते हैं , वैसे ही हे मनुष्यों ! तुम लोग उन जल औषधि - रसों को शुद्ध करने के लिए , मेघ के शीघ्र - वेग में , लौकिक पदार्थों का अभिसिंचन करने वाले , जल को स्वीकार करो और जैसे वे जल शुद्ध होते हैं , वैसे ही तुम भी शुद्ध हो जाओ |