स्त्रैणता का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- यानी यह माना जा सकता है कि अपने मार्ग में स्त्रैणता के मूल भाव को अभिव्यक्ति देने के बावजूद सूफ़ी सिद्ध और साधक स्त्रियों के प्रति अपने समय के पूर्वाग्रहों से मुक्त नहीं हो सके थे।
- लम्बा-तिरछा , चपटा, गोरा-गोरा, हाथ की पीठ पर नसें उभरी हुईं, कंठ की घंटी बाहर निकली , सूखी टांगो पर बड़े- बड़े पांव, लेकिन बेडौल नहीं, स्त्रैणता लिए हुए अजीब सी नफासत, चेहरे पर झुंझलाहट, आवाज में बेचैनी.......
- कट्टर इस्लाम ने जलाल के , पौरुष के पक्ष पर बहुत अधिक ज़ोर दिया और धर्म के स्वरूप का संतुलन बिगाड़ दिया जिस के चलते जमाल के स्त्रैणता के भाव अभिव्यक्ति के लिए दूसरे स्रोतों से राह पाने लगे।
- कट्टर इस्लाम ने जलाल के , पौरुष के पक्ष पर बहुत अधिक ज़ोर दिया और धर्म के स्वरूप का संतुलन बिगाड़ दिया जिस के चलते जमाल के स्त्रैणता के भाव अभिव्यक्ति के लिए दूसरे स्रोतों से राह पाने लगे।
- लम्बा-तिरछा , चपटा , गोरा-गोरा , हाथ की पीठ पर नसें उभरी हुईं , कंठ की घंटी बाहर निकली , सूखी टांगो पर बड़े- बड़े पांव , लेकिन बेडौल नहीं , स्त्रैणता लिए हुए अजीब सी नफासत , चेहरे पर झुंझलाहट , आवाज में बेचैनी .......
- लम्बा-तिरछा , चपटा , गोरा-गोरा , हाथ की पीठ पर नसें उभरी हुईं , कंठ की घंटी बाहर निकली , सूखी टांगो पर बड़े- बड़े पांव , लेकिन बेडौल नहीं , स्त्रैणता लिए हुए अजीब सी नफासत , चेहरे पर झुंझलाहट , आवाज में बेचैनी .......
- ( 3 ) तीसरे प्रकार के प्रेम का उदय प्राय : राजाओं के अंत : पुर , उद्यान आदि के भीतर भोगविलास या रंग रहस्य के रूप में दिखाया जाता है , जिसमें सपत्नियों के द्वेष , विदूषक आदि के हास परिहास और राजाओं की स्त्रैणता आदि का दृश्य होता है।
- एक से रहा नहीं गया तो बिल्कुल साफ ही बोल गए- “ शरम की बात कह दूं कि उनका इतिहास मैंने यह टटोलने की इच्छा से खोला था कि वहाँ मैं हूँ तो कहाँ और कैसे हूँ . ” ( जैनैंद्र कुमार ) शुक्ल जी की आलोचना में झलकते पौरुष से चिढ़े हुए साहित्य में कोमलता और स्त्रैणता के बेहद हिमायती एक शांति प्रिय सज्जन बोले- ‘‘ सब मिलाकर कोमल और कठिन रसों के संचय में उनका झुकाव पुरुष-वृत्ति की ओर ही है , कोमल वृत्ति की ओर नहीं .
- कौन इस अहैतुक औदार्य के लिए तैयार होगा ? -और वह भी कोई भारतीय मना नारी ? इंगित विषय के लौकिक / अलौकिक निहितार्थों के बावजूद भी ? मैं और मेरे कुछ मित्र ( ईर्ष्यावश नाम नहीं दे रहा हूँ ! ) इसलिए ही स्वप्न जी को ' मर्दानी ' नारी मानते हैं -और इस अभिव्यक्ति पर नारीवादी हो हल्ला मचायें तो मचाएं ! स्वप्न जी में लेश मात्र की रूग्ण स्त्रैणता नहीं है , भारतीय ' नारीत्व ' का कोई विह्वल दारुण्य नहीं है , दुहाई नहीं है ..