स्पन्द का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- देखती मुझे तू हँसी मन्द , होंठो में बिजली फँसी स्पन्द उर में भर झूली छवि सुन्दर, प्रिय की अशब्द श्रृंगार-मुखर तू खुली एक उच्छवास संग, विश्वास-स्तब्ध बँध अंग-अंग, नत नयनों से आलोक उतर काँपा अधरों पर थर-थर-थर।
- हम दूर से तारों के सुन्दर शून्य झिकमिक को बार-बार देखते हैं लेकिन वह नि : स्पन्द निश्कपट योति सचमुच भावहीन है , या आप ही आप अपनी अन्त : लहरी में मस्त है , इसे जानना आसान नहीं।
- हम दूर से तारों के सुन्दर शून्य झिकमिक को बार-बार देखते हैं लेकिन वह नि : स्पन्द निश्कपट योति सचमुच भावहीन है , या आप ही आप अपनी अन्त : लहरी में मस्त है , इसे जानना आसान नहीं।
- देखती मुझे तू हँसी मन्द , होंठो में बिजली फँसी स्पन्द उर में भर झूली छवि सुन्दर , प्रिय की अशब्द श्रृंगार-मुखर तू खुली एक उच्छवास संग , विश्वास-स्तब्ध बँध अंग-अंग , नत नयनों से आलोक उतर काँपा अधरों पर थर-थर-थर।
- “एम् एस ”यही हिफाज़ती खोल उड़ जाता है किसी इन्फ्लेमेशन की वजह से . नतीज़ननाड़ियाँ डी-माय -लिनेटिद हो जातीं हैं .परिणाम स्वरूप वह तमाम विद्युत् स्पन्द (इलेक्ट्रिकल इम्पल्सिज़ )जो इन नाड़ियों से होकर जातें हैं उनका प्रसारण तेज़ी घाट जाती है ,अवमंदन हो जाता है इन स्पंदों का ।
- चढ़ षष्ठ दिवस आज्ञा पर हुआ समासित मन , प्रतिजप से खिंच-खिंच होने लगा महाकर्षण , संचित त्रिकुटी पर ध्यान द्विदल देवी-पद पर , जप के स्वर लगा काँपने थर-थर-थर अम्बर ; दो दिन नि : स्पन्द एक आसन पर रहे राम , अर्पित करते इन्दीवर जपते हुए नाम।
- चढ़ षष्ठ दिवस आज्ञा पर हुआ समासित मन , प्रतिजप से खिंच-खिंच होने लगा महाकर्षण , संचित त्रिकुटी पर ध्यान द्विदल देवी-पद पर , जप के स्वर लगा काँपने थर-थर-थर अम्बर ; दो दिन नि : स्पन्द एक आसन पर रहे राम , अर्पित करते इन्दीवर जपते हुए नाम।
- कभी पाना मुझे तुम अभी आग ही आग मैं बुझता चिराग हवा से भी अधिक अस्थिर हाथों से पकड़ता एक किरण का स्पन्द पानी पर लिखता एक छंद बनाता एक आभा-चित्र और डूब जाता अतल में एक सीपी में बंद कभी पाना मुझे सदियों बाद दो गोलार्धों के बीच झूमते एक मोती में ।
- दर्श रात की भीगी ओस से जो स्पन्द मिला , भोर उपवन में एक पुष्प खिला, नर्म पंखुडियां छूकर जो हर्ष मिला, उसी संवेदन सा तेरा स्पर्श मिला, आज उडती हवाओं में जब हर्ष खिला, मन के सूने कोने को एक फ़र्श मिला, तुम्हारी ना से हां का लंबा वर्ष मिला, सांस आयी जब तुम्हारा दर्श मिला ।
- जैसे रथ , घोड़ा , हस्ति प्यादा इनके सिवा सेना का रूप और कुछ नहीं , तैसे ही चित्त स्पन्द के सिवा मन का रूप और कुछ नहीं-इस कारण दुष्टरूप मन के समान तीनों लोकों में कोई नहीं सम्यक् ज्ञान हो तब मृतकरूप मन नष्ट हो जाता है मिथ्या अनर्थ का कारण चित्त है इसको मत धरो अर्थात् संकल्प का त्याग करो ।