हैमन का अर्थ
उदाहरण वाक्य
- होली है ……… होली है …… . आयो खेले होली मिल केदिल से दिल तक है ये सफ़रइस बार … फागुन कुछ बहका बहका हैमन भी कुछ महका महका हैले रंगों के बोछार … उडे लाल लाल गुला ल. .
- प्रायश्चितकभी कभी सोचता हूँक्या पापियों के पापबिना प्रायश्चित हीधुल जाते हैंऔर फिर पापियों कोऔर पाप करने कीराह दिखलाते हैंयदि हाँतो इन पापियों के पापबिना प्रायश्चित हीक्यों धो डालती है गंगाक्या ये भी पाप नहीं हैमन सहजता सेइस बात कोस्वीकार नहीं कर पाता . ..
- वहां बादल पूछते हैं / मन का हालहवा सहलाती है गालबारिश की हल्की-हल्की बूंदेंगीला कर देती हैं मनकोहरा ढक लेता हैमन के सारे ग़मपहाड़ों से ढलकती हुईगाय, भैंस और बकरियांबजाती हैं टुन-टुन, टन-टनबच्चे दौड़ते हुएचिल्लाते हैं हंसी की धुनवहां.... दूर.... पहाड़ की
- प्रायश्चितकभी कभी सोचता हूँक्या पापियों के पापबिना प्रायश्चित हीधुल जाते हैंऔर फिर पापियों कोऔर पाप करने कीराह दिखलाते हैंयदि हाँतो इन पापियों के पापबिना प्रायश्चित हीक्यों धो डालती है गंगाक्या ये भी पाप नहीं हैमन सहजता सेइस बात कोस्वीकार नहीं कर पाता
- फेरुफ़ेरु अमरेथू रहता हैवह कहार हैकाकवर्ण हैसृष्टि वृक्ष का एक पर्ण हैमन का मौजीऔर निरंकुशराग रंग में ही रहता हैउसकी सारी आकान्क्षाएं - अभिलाषाएंबहिर्मुखी हैंइसलिए तोकुछ दिन बीतेअपनी ही ठकुराइन को लेवह कलकत्ते चला गया थाजब से लौटा हैउदास ही अब रहता है।
- कविता कोईचातुर्य नहीं हैशब्दों का . वह दिल सेनिःसृत एकआवाज है.यह साज कीमर्जी साथ दे,या न दे ;वह साज कीरही नहीं कभीमोहताज है.क्योकि साज कोकानों तक पहुचनेके लिए ध्वनि कासतत साथ चाहिएपरन्तु कविता तोसंकेतो प्रतीकों सेभी पहुचती है -गंतव्य तक.मौन में भीपहुचाती हैमन केकोने कोने तक.अपनी मधुर आवाज.
- मानवता से प्रेम बड़ा हैमन के ऊपर मानवता , मन के भेद- अभेद खुले जबदिखे छुपी निज दानवता हैं परिभाषाएं गढ़ी हुई जोलगती हैं सारी निस्सार थोथा जीवन जीते हैं हम जान ना पाते इसका सार चार तरह के मनुज धरा पर करते जीवन क्रम निर्धारितकैसा जीवन पाए मानव
- मानवता से प्रेम बड़ा हैमन के ऊपर मानवता , मन के भेद- अभेद खुले जबदिखे छुपी निज दानवता हैं परिभाषाएं गढ़ी हुई जोलगती हैं सारी निस्सार थोथा जीवन जीते हैं हम जान ना पाते इसका सार चार तरह के मनुज धरा पर करते जीवन क्रम निर्धारितकैसा जीवन पाए मानव...
- मानवता से प्रेम बड़ा हैमन के ऊपर मानवता , मन के भेद- अभेद खुले जबदिखे छुपी निज दानवता हैं परिभाषाएं गढ़ी हुई जोलगती हैं सारी निस्सार थोथा जीवन जीते हैं हम जान ना पाते इसका सार चार तरह के मनुज धरा पर करते जीवन क्रम निर्धारितकैसा जीवन पाए मानव
- अँधियारा पिंजरे में घुप हैमन का पंछी आज भी चुप हैफ़ैले हैं यादों के दाने वो भी चुगे नहीं , क्यों जाने शक्लें ,बातें वक्त के साएकोई भी न आये जायेन तो पिछला न ही अगलाकुछ भी याद करे न पगला पंख समेटे हुये पड़ा हैजाने कब से नहीं उड़ा ह...