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अग्निचयन वाक्य

उच्चारण: [ aganicheyn ]

उदाहरण वाक्य

  1. (14) इष्टका अग्निचयन के प्रसंग में इष्टकाओं (ईटों) का प्रयोग होता है ।
  2. इन ग्रंथ में दर्श, पौर्णमास इष्टियों का वर्णन है, पशुबंध, सोमयज्ञों का वर्णन है, इसके दसवां कांड अग्निरहस्य कहलाता है जिसमें अग्निचयन रहस्य निरूपण है.
  3. यहाँ स्थूलदृष्टया यह जानना है कि प्रत्येक छोटे (इष्टि) और बड़े (सोम, अग्निचयन) यज्ञों में मुख्य चार ऋत्विक्-होता, अध्वर्यु, उद्गाता और ब्रह्मा होते हैं।
  4. इसके प्रतिपाद्य विषय ये हैं-दर्शपौर्णमास इष्टि (1-2 अ0); अग्न्याधान (3 अ0); सोमयज्ञ (4-8 अ0); वाजपेय (9 अ.); राजसूय (9-10 अ.); अग्निचयन (11-18 अ.) सौत्रामणी (19-21 अ.); अश्वमेघ (22-29 अ.); सर्वमेध (32-33 अ.); शिवसंकल्प उपनिषद् (34 अ.); पितृयज्ञ (35 अ.); प्रवग्र्य यज्ञ या धर्मयज्ञ (36-39 अ.); ईशोपनिषत् (40 अ.)।
  5. जिसका अर्थ है सोने के पंखों वाला, गरुड़ को सूर्य एवं अग्नि प् प्रतीक भी माना गया है, ऋग्वेद मैं सम्पूर्ण तथा गरुड़ का उल्लेख हुवा! इस आकार की पवित्र गरुड़ पक्षी वेदिका मैं प्राचीन काल मैं अग्निचयन, अश्वमेघ, सोम पुरुष मेघ इत्यादि यज्ञों का अम्पन्न करना उपयुक्त माना जाता है!
  6. याज्ञवल्क्य जी द्वारा रचित ग्रंथों की श्रेणी में सर्वप्रथम ग्रंथ शुक्ल यजुर्वेद संहिता प्राप्त होता है इसके 40 अध्यायों में पद्यात्मक मंत्र तथा गद्यात्मक यजुर्वेद भाग का संग्रह है इसके विषय ये हैं दर्शपौर्णमास इष्टि, अग्न्याधान, सोमयज्ञ, वाजपेय, राजसूय, अग्निचयन, सौत्रामणी, अश्वमेघ, शिवसंकल्प उपनिषद, ईशोपनिषत जैसे विषय देखे जा सकते हैं.
  7. उस अग्नि के लिए जैसी जितनी ईंटें चाहिए, वे जिस प्रकार रक्खी जानी चाहिए तथा यज्ञस्थली निर्माण के लिए आवश्यक सामग्रियाँ और अग्निचयन करने की विधि बतलाते हुए अत्यन्त सन्तुष्ट होकर यम ने द्वितिय वर के रूप में कहा-' मैने जिस अग्नि की बात आपसे कहीं, वह आपके ही नाम से प्रसिद्ध होगी और आप इस विचित्र रत्नों वाली माला को भी ग्रहण कीजिए। '
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