अष्टमूर्ति वाक्य
उच्चारण: [ asetmureti ]
उदाहरण वाक्य
- फिर शिव की उपासना अष्टमूर्ति (आठ आकारों) में होती है-मन, चित्त और अहंकार इसी में आते हैं।
- संसार में यदि आपने किसी प्राणी को किसी प्रकार का कष्ट दिया, तो निश्चित रूप से आपने अष्टमूर्ति शिव का अनिष्ट किया।
- -पाद टिप्पणी भगवदनुग्रहयपावित्रितवाक् कालिदास ने अष्टमूर्ति शिव का प्रत्यक्ष शरीर कहा है जल को और उस जल को स्रष्टा की आदि सृष्टि माना है।
- प्रभु शिव प्रसन्न हुए और शुक्राचार्य ने शिव की अष्टमूर्ति की स्तुति की और प्रभु शिव ने प्रसन्न होकर शुक्राचार्य जी को मृतसंजीवनी विद्या प्रदान की।
- शिवपुराण में कहा गया है कि पशुपति नाथ जी की अष्टमूर्ति में सारा संसार ऐसे समाया है जैसे सूत्र में सूत्र की मणियां पिरोई हुई रहती हैं।
- वस्तुत: यह रूप भगवान् की अष्टमूर्ति में से, अग्निमूर्ति के तरफ इशारा करता है क्योंकि अग्नि का ऊपरी भाग लाल और नीचे का भाग काला होता है।
- वही भगवान शिव को सहत्रपक्षु, तिग्यायुध, वज्रायुध, विधुच्छक्ति, नारायण, श्वेताश्वर, अथर्व, कैवन्य, तंन्तिरीय, त् रयम्बक, त्रिलोचन, ताण्डवनर्तक, अष्टमूर्ति, पशुपति, अरोग्यकारक, वप्रांवर्धक, औसधवधित रूप में भी शिव को जाना जाता है।
- स्वामी माना जाता है | सूर्य देव को शिव और विष्णु का प्रतिरूप माना गया है| एक ओर जहाँ इन्हें सूर्य नारायण भी बुलाया जाता है वहीँ इन्हें अष्टमूर्ति शिव के आठ रूपों में से एक माना गया है| विद्यापति गीत (कनक भूधर) “कवि कोकिल विद्यापति”
- घुश्मेश्वर-हैदराबाद के दौलताबाद से १ ९ किलोमीटर दूर बेरुल गाँव में स्थित है / उप लिंग-व्याघ्रेश्वर लिंग है / शिव पुराण:-शत रूद्र संहिता में शिव को अष्टमूर्ति कहा गया है / शर्व, भव, रूद्र, उग्र, भीम पशुपति, ईशान, महादेव / शिव के इस अष्टमूर्ति क़ि उपासना करने से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की पूजा की जाती है / सती के अग्नि आहुति के बाद, दक्ष के यज्ञ का विनाश हुआ / उसके बाद रूद्र रूप के सामने दक्ष जिस मंत्र से याचना किये वह निम्न है:
- घुश्मेश्वर-हैदराबाद के दौलताबाद से १ ९ किलोमीटर दूर बेरुल गाँव में स्थित है / उप लिंग-व्याघ्रेश्वर लिंग है / शिव पुराण:-शत रूद्र संहिता में शिव को अष्टमूर्ति कहा गया है / शर्व, भव, रूद्र, उग्र, भीम पशुपति, ईशान, महादेव / शिव के इस अष्टमूर्ति क़ि उपासना करने से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की पूजा की जाती है / सती के अग्नि आहुति के बाद, दक्ष के यज्ञ का विनाश हुआ / उसके बाद रूद्र रूप के सामने दक्ष जिस मंत्र से याचना किये वह निम्न है: