आखिरी अदालत वाक्य
उच्चारण: [ aakhiri adaalet ]
उदाहरण वाक्य
- और ऐसे लोगों की कमाई से जुटाई गई दौलत भी सरकार को निचली अदालत के फैसले के बाद अपने कब्जे में तब तक रोककर रखनी चाहिए जब तक कि देश की आखिरी अदालत उनको बरी न कर दे।
- जेल में बंद लोगों को चुनाव लड़ने की इजाजत हो और जब तक आखिरी अदालत से सजा तय नहीं हो जाए तब तक विधायिका के सदस्यों की सदस्यता बची रहे इसके लिए सरकार की याचिका पर सभी पार्टियां एक साथ हैं।
- गनीमत है कि यह अदालत देश की आखिरी अदालत नहीं है और फिलहाल इतिहास में यह लिखने के लिए बाध्य नहीं है कि डॉक्टर राजेश और डॉक्टर नुपुर तलवार ने लगभग सवा दो साल पहले अपनी चौदह साल की मासूम बेटी की हत्या कर दी।
- गनीमत है कि यह अदालत देश की आखिरी अदालत नहीं है और फिलहाल इतिहास में यह लिखने के लिए बाध्य नहीं है कि डॉक्टर राजेश और डॉक्टर नुपुर तलवार ने लगभग सवा दो साल पहले अपनी चौदह साल की मासूम बेटी की हत्या कर दी।
- अदालत का फैसला आने में वक्त लग सकता है, सुबूतों की कमी से कुछ लोग छूट भी सकते हैं, लेकिन सजा पाने का खतरा ही अधिक रहता है और ऐसे मामलों में तो पहली बार नाम आने से लेकर आखिरी अदालत के फैसले तक शर्मिंदगी भी एक सजा रहती है।
- लालू यादव और चौटाला जैसों के मामले अभी भी आखिरी अदालत के आखिरी फैसले से कोसों दूर हैं, और ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ही ऐसे खतरनाक मुजरिमों से संसद और विधानसभाओं को बचाने की कोशिश करता है, तो गांधी-नेहरू की पार्टी उस सुप्रीम कोर्ट के मुंह पर अध्यादेश चबाकर थूक देती है।
- इस विरोधाभास के खिलाफ अब जनता ने सोचना भी बंद कर दिया है, क्योंकि मुजरिमों को जहां पर आखिरी अदालत के आखिरी फैसले तक पुलिस से सलामी लेने और संसद-विधानसभा में कानून बनाने का हक हो, उस लोकतंत्र में जनता क्या खाकर गांधी के सिद्धांतों पर अमल की उम्मीद कर सकती है?
- ऐसे दागी जब तक देश की आखिरी अदालत से बेकसूर साबित न हो जाएं, तब तक क्या उनकी जगह कोई शरीफ सोनिया-राहुल की पार्टी को नहीं मिलता? आज राहुल अगर देश भर में अपराधी-अध्यादेश के विरोध को देखकर इसे बकवास बता रहे हैं, तो उनके आनेवाले चुनावों में अपने को इस बयान के प्रति ईमानदार भी साबित करना होगा।
- आज देश में चाहे अन्ना हजारे के उठाए, या अरविंद केजरीवाल के उठाए, एक ऐसी बहस की जरूरत है जिसमें पार्टियों से यह सवाल पूछा जाए कि क्या उनके पास दागियों और मुजरिमों के अलावा ऐसे नेता नहीं हैं जिनसे वे पार्टी का काम चला सकें, जिनसे वे सरकार चला सकें? क्या शरीफों और ईमानदारों का टोटा इस कदर पड़ गया है कि पार्टियों घूम-घूमकर अपने ही मुजरिमों को देश की आखिरी अदालत तक बच जाने का मौका देते हुए उन्हीं को बाप बनाकर चलती हैं?