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आचार्य ज्ञानसागर वाक्य

उच्चारण: [ aachaarey jenyaanesaagar ]

उदाहरण वाक्य

  1. श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर राजस्थान एवं महाकवि आचार्य ज्ञानसागर छात्रावास की स्थापना आपकी प्रेरणा से हुई, जिसमें प्रतिवर्ष 100 श्रमण संस्कृति समर्थक विद्वान तैयार हो कर भार वर्ष में जिनवानी का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं अर्थात सांगानेर को तो विद्वान तैआर करने की खान बना दिया है।
  2. स.) पट्टाचार्य आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने कहा कि आज के माता-पिता को पता ही नहीं है कि उन्हें संतान को क्या सिखाना है क्या नहीं? इसलिए शादी से पूर्व ही यह सीखना जरूरी है कि मां-बाप क्या होते हैं? अतिशय क्षेत्र बड़ागांव में..
  3. श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर राजस्थान एवं महाकवि आचार्य ज्ञानसागर छात्रावास की स्थापना आपकी प्रेरणा से हुई, जिसमें प्रतिवर्ष 100 श्रमण संस्कृति समर्थक विद्वान तैयार हो कर भार वर्ष में जिनवानी का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं अर्थात सांगानेर को तो विद्वान तैआर करने की खान बना दिया है।
  4. महाकवि आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज सभागृह सहित इस जिनालय का 11 अगस्त, 1997 को मुनि श्री के ससंघ सानिध्य में दिगम्बर जैन श्रेष्ठी श्री रतनलाल जी, श्री कंवरलाल जी, युवारत्न अशोक कुमार, सुरेश कुमार एवं विमल कुमार पाटनी, आर. के. मार्बल प्राइवेट लिमिटेड परिवार ने शिलान्यास कर पुण्यार्जन किया।
  5. सल्लेखना के पहले गुरुवर्य ज्ञानसागर जी महाराज ने आचार्य-पद का त्याग आवश्यक जान कर आपने आचार्य पद मुनि विद्यासागर को देने की इच्छा जाहिर की, परंतु आप इस गुरुतर भार को धारण करने किसी भी हालत में तैयार नहीं हुए, तब आचार्य ज्ञानसागर जी ने सम्बोधित कर कहा के साधक को अंत समय में सभी पद का परित्याग आवश्यक माना गया है।
  6. किंतु सल्लेखना के पहले गुरुवर्य ज्ञानसागर जी महाराज ने आचार्य-पद का त्याग आवश्यक जान कर आपने आचार्य पद मुनि विद्यासागर को देने की इच्छा जाहिर की, परंतु आप इस गुरुतर भार को धारण करने किसी भी हालत में तैयार नहीं हुए, तब आचार्य ज्ञानसागर जी ने सम्बोधित कर कहा के साधक को अंत समय में सभी पद का परित्याग आवश्यक माना गया है।
  7. किंतु सल्लेखना के पहले गुरुवर्य ज्ञानसागर जी महाराज ने आचार्य-पद का त्याग आवश्यक जान कर आपने आचार्य पद मुनि विद्यासागर को देने की इच्छा जाहिर की, परंतु आप इस गुरुतर भार को धारण करने किसी भी हालत में तैयार नहीं हुए, तब आचार्य ज्ञानसागर जी ने सम्बोधित कर कहा के साधक को अंत समय में सभी पद का परित्याग आवश्यक माना गया है।
  8. अत: कुन्द-कुन्द मूलाम्नाय एवं श्रमण संस्कृति के उन्नायक आचार्य श्री विद्यासागर के गुरू एवं आचार्य शिवसागर महाराज के प्रथम शिष्य महाकवि आचार्य ज्ञानसागर की स्मृति चिरस्थाई बनाये रखने हेतु आपके ही प्रशिष्य मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज के मुखारविन्द से इस क्षेत्र का नाम श्री दिगम्बर जैन ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र 30 जून 1995 को उद्घोषित किया, जिसे हजारों लोगों की सभा ने जयकारों के साथ स्वीकार किया, तभी से यह क्षेत्र इसी नाम से जाना जा रहा है और विश्व भर में सदैव इसी नाम से जाना जाता रहेगा।
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