आनंद नारायण मुल्ला वाक्य
उच्चारण: [ aanend naaraayen mulelaa ]
उदाहरण वाक्य
- उन्होंने कहा कि तीन सिपाहियों द्वारा सक्सेना के हमले से न्यायमूर्ति आनंद नारायण मुल्ला का वह कथन याद आ जाता है जिसमें उन्होंने पुलिस को अपराधियों का संगठित गिरोह करार दिया था।
- वर्तमान में पुलिस के क्रियाकलापों को देखकर माननीय न्यायमूर्ति आनंद नारायण मुल्ला की टिपण्णी याद आ जाती है कि पुलिस अपराधियों का एक संगठित गिरोह है, इसके अतिरिक्त कुछ नही है ।
- वर्तमान में पुलिस के क्रियाकलापों को देखकर माननीय न्यायमूर्ति आनंद नारायण मुल्ला की टिपण्णी याद आ जाती है कि पुलिस अपराधियों का एक संगठित गिरोह है, इसके अतिरिक्त कुछ नही है ।
- मिस्टेक???? रिपेयर?????? क्या बात कर रहे हैं आप? कैसी बात कर रहे हैं आप? आप की इस बात से आनंद नारायण मुल्ला जी का शेर याद आ गया...
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश आनंद नारायण मुल्ला की उस टिप्पणी की याद वे कर लें जिसमें उन्होंने कहा था कि, '' खाकी वर्दी में गुंडों का यह संगठित गिरोह है।
- प्रगतिशील लेखक संघ के लखनऊ-अधिवेशन में देश की आजादी और सामाजिक समानता के आदर्शों से भरे कई नौजवानों ने हिस्सा लिया जिनमें हसरत मोहानी, जैनेंद्र कुमार, फैज अहमद फैज, सागर निजामी, फिराक गोरखपुरी, रशीद जहां, अहमद अली, आनंद नारायण मुल्ला आदि मुख्य थे।
- कुछ देशवासी कह रहें हैं कि हर बस, हर गली, हर रेल के डब्बे और हर संभव कोने में पुलिस तैनात हो ताकि अपराधी अपराध को अंजाम नहीं दे पाये (शायद इन लोगों ने माननीय न्यायमूर्ति आनंद नारायण मुल्ला की टिप्पणी नहीं पढ़ी.
- प्रगतिशील लेखक संघ के लखनऊ-अधिवेशन में देश की आजादी और सामाजिक समानता के आदर्शों से भरे कई नौजवानों ने हिस्सा लिया जिनमें हसरत मोहानी, जैनेंद्र कुमार, फैज अहमद फैज, सागर निजामी, फिराक गोरखपुरी, रशीद जहां, अहमद अली, आनंद नारायण मुल्ला आदि मुख्य थे।
- ग़ज़ल की जब बात आएगी तो जनाब रघुपति सहाय फ़िराक गोरखपुरी, आनंद नारायण मुल्ला, त्रिलोक चंद ' महरूम ', पंडित लभ्भूराम जोश मलसियानी, कुमार पाशी, कृष्ण बिहारी नूर, कुंवर महेंद्र सिंह बेदी ' सहर ', कुंवर बैचैन, दुष्यंत कुमार, सूर्यभानु गुप्त, बाल स्वरुप राही आदि का जिक्र किये बिना अधूरी रहेगी.
- कोई ऐसा दिन नहीं गुजरता जब देश के अलग-अलग किसी न किसी हिस्से से ऐसी खबर सामने न आए जिससे कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस आनंद नारायण मुल्ला की लिखी वह बात सही साबित न हो जिसमें उन्होंने पुलिस को वर्दीधारी गुंडों का गिरोह करार दिया था, और यहां तक कहा था कि पूरे देश में अपराधियों का कोई भी ऐसा गिरोह नहीं है जो कि भारतीय पुलिस जितना बड़ा संगठित अपराधी हो, और देश में कोई भी इज्जतदार इंसान पुलिस से शिकायतकर्ता, गवाह, या प्रतिवादी, किसी भी हैसियत से जुडना नहीं चाहेंगे।