आश्रव वाक्य
उच्चारण: [ aasherv ]
उदाहरण वाक्य
- इस प्रकार अदृष्ट, अपूर्व, आश्रव तथा अविज्ञप्ति रूप तत्व कर्म और फल के बीच सेतु का कार्य करते हैं।
- भारतीय दर्शन अदृष्ट, अपूर्व, आश्रव तथा अविज्ञप्ति रूप आदि सिद्धांतों के द्वारा इस समस्या का हल प्रस्तुत करने का प्रयत्न करते हैं।
- जैन दर्शन में कर्म और फल के संबंध की व्याख्या जीव में पुद्गल कर्मों अथवा कर्म पुद्गल के आश्रव के सिद्धांत के द्वारा की गई है।
- जैन धर्म में भी बारह भावनाओं का महत्व है-अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आश्रव, संवर, निर्जरा, लोक और धर्म भावना ।
- ये दुक 12 वर्गों में विभाजित हैं जिनके नाम हैं-(1) हेतु (2) प्रत्ययादि (3) आश्रव (4) संयोजन (5) ग्रंथ (6) ओध (7) योग (8) नीवरण (9) परामर्श (10) विस्तृत मध्यम दुक (11) उपादान और (12) क्लेश।
- ये दुक 12 वर्गों में विभाजित हैं जिनके नाम हैं-(1) हेतु (2) प्रत्ययादि (3) आश्रव (4) संयोजन (5) ग्रंथ (6) ओध (7) योग (8) नीवरण (9) परामर्श (10) विस्तृत मध्यम दुक (11) उपादान और (12) क्लेश।
- ये दुक 12 वर्गों में विभाजित हैं जिनके नाम हैं-(1) हेतु (2) प्रत्ययादि (3) आश्रव (4) संयोजन (5) ग्रंथ (6) ओध (7) योग (8) नीवरण (9) परामर्श (10) विस्तृत मध्यम दुक (11) उपादान और (12) क्लेश।
- यहीं तो गीता का सार है भाई / भगवान बुद्ध की वाणी... “ दूसरों का दोष देखना सरल हैं, किन्तु अपना (दोष) देखना कठिन / वह (व्यक्ति) दूसरों के दोषों को भूसे कि तरह उडाता फिरता हैं, किन्तु अपने दोषों को वैसे ही ढंकता हैं जैसे बेईमान जुआरी पासे को / दुसरे के दोषों को देखने में लगे हुए, सदा शिकायत करने की चेतना वाले (व्यक्ति) के आश्रव (चित्त-मल) बढ़ते हैं / वह दुक्खों के क्षय से दूर होता है / ”