कैफ़ भोपाली वाक्य
उच्चारण: [ kaif bhopaali ]
उदाहरण वाक्य
- ये मुझे बेहद पसंद है........... फ़िल्म: दाएरा (१९५३) मुख्य कलाकार: नासिर खान और मीना कुमारी संगीतकार: जमाल सेन गीतकार: कैफ़ भोपाली
- ये सब मैं आज आपसे क्यूँ कह रहा हूँ? क्या करूँ कैफ़ भोपाली का लिखा ये नग्मा उन अहसासों की याद ताजा़ जो कर रहा है।
- “समय से मुठभेड़” नाम से जब उनका संग्रह आया तो सोचिए कि कैफ़ भोपाली ने लंबी भूमिका हिंदी में लिखी और उन्हें फ़िराक, जोश और मज़ाज़ के बराबर बिठाया।
- समय से मुठभेड नाम से जब उन का संग्रह आया तो सोचिए कि कैफ़ भोपाली ने लंबी भूमिका हिंदी में लिखी और उन्हें फ़िराक, जोश और मज़ाज़ के बराबर बिठाया।
- समय से मुठभेड नाम से जब उन का संग्रह आया तो सोचिए कि कैफ़ भोपाली ने लंबी भूमिका हिंदी में लिखी और उन्हें फ़िराक, जोश और मज़ाज़ के बराबर बिठाया।
- इस फ़िल्म में लता जी का गाया एक बहुत ही सुंदर भक्ति रचना है “अल्लाह भी है मल्लाह भी है, कश्ती है कि डूबी जाती है”, जिसे गीतकार कैफ़ भोपाली ने लिखा था।
- कैफ़ भोपाली का नाम याद आते ही याद आते हैं फ़िल्म ' पाक़ीज़ा ' के दो गीत “ तीर-ए-नज़र देखेंगे ” और “ चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो ” ।
- दरअसल सितार की आरंभिक धुन के बाद लता जी की आवाज़ कानों तक छन छन कर कैफ़ भोपाली के शब्दों को इस तरह पहुँचाती है कि मन गीत की भावनाओं के साथ हिचकोले लेने लगता है।
- इस फ़िल्म में लता जी का गाया एक बहुत ही सुंदर भक्ति रचना है “ अल्लाह भी है मल्लाह भी है, कश्ती है कि डूबी जाती है ”, जिसे गीतकार कैफ़ भोपाली ने लिखा था।
- अदम गोंडवी उन रचनाकारों में थे जिन्होंने बिंब और प्रतीकों से आगे निकल कर आम आदमी की ज़ुबान को अभिव्यक्ति की वुस ' अत बख्शी.......! धूमिल और दुष्यंत की परमपरा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने जो लिखा वो एक दम सच और बेबाक रहा........! आम आदमी से जुड़े सारोकार और उसकी भावनाओं को मंच से आवाज़ देने में अदम साहब का कोई जोड़ नहीं था......! 'समय से मुठभेड़' नाम से जब उनका संग्रह आया तो सोचिए कि कैफ़ भोपाली ने लंबी भूमिका हिंदी में लिखी और उन्हें फ़िराक, जोश और मज़ाज़ के समकक्ष बताया....!