गंग कवि वाक्य
उच्चारण: [ ganega kevi ]
उदाहरण वाक्य
- रहीम ने गंग कवि की बात का उत्तर बड़ी विनम्रतापूर्वक दिया-देनदार कोऊ और है, भेजत सो दिन रैन।
- गंग कवि ने रहीम से पूछा-सीखे कहां नवाबजू, ऐसी दैनी देन ज्यों-ज्यों कर ऊंचा करो त्यों-त्यों नीचे नैन।।
- गंग कवि को उसके दो पदों छंदों पर प्रसन्न होकर रहीम ने एक बार छत्तीस लाख रुपए दे दिए थे ।
- उनकी दानशीलता और विनम्रता से प्रभावित होकर गंग कवि ने एक बार उनसे यह दोहा कहा-' सीखे कहाँ नवाब जू, ऐसी दैनी दैन।
- ‘संस्कृति के चार अध्याय ' में हिन्दी भाषा के विकास पर श्री रामधारी सिंह दिनकर अकबर के दरबारी कवि गंगाधर उर्फ गंग कवि (1538-1625 ई.) के खड़ी बोली में लिखित “चंद छंद बरनन की महिमा” नामक एक पुस्तक के गद्यांश का उल्लेख करते हैं-“सिद्धि श्री 108 श्री श्री पातसाहिजी श्री दलपतिजी अकबरसाहजी आमखास में तखत ऊपर विराजमान हो रहे।
- ‘संस्कृति के चार अध्याय ' में हिन्दी भाषा के विकास पर श्री रामधारी सिंह दिनकर अकबर के दरबारी कवि गंगाधर उर्फ गंग कवि (1538-1625 ई.) के खड़ी बोली में लिखित “एक 'चंद छंद बरनन की महिमा” नामक एक गद्य पुस्तक के अंश का उल्लेख करते हैं-“सिद्धि श्री 108 श्री श्री पातसाहिजी श्री दलपतिजी अकबरसाहजी आमखास में तखत ऊपर विराजमान हो रहे।
- ‘सं स्कृति के चार अध्याय ' में हिन्दी भाषा के विकास पर श्री रामधारी सिंह दिनकर अकबर के दरबारी कवि गंगाधर उर्फ गंग कवि (1538-1625 ई.) के खड़ी बोली में लिखित “चंद छंद बरनन की महिमा” नामक एक पुस्तक के गद्यांश का उल्लेख करते हैं-“ सिद्धि श्री 108 श्री श्री पातसाहिजी श्री दलपतिजी अकबरसाहजी आमखास में तखत ऊपर विराजमान हो रहे।
- ‘ सं स्कृति के चार अध्याय ' में हिन्दी भाषा के विकास पर श्री रामधारी सिंह दिनकर अकबर के दरबारी कवि गंगाधर उर्फ गंग कवि (1538-1625 ई.) के खड़ी बोली में लिखित “ चंद छंद बरनन की महिमा ” नामक एक पुस्तक के गद्यांश का उल्लेख करते हैं-“ सिद्धि श्री 108 श्री श्री पातसाहिजी श्री दलपतिजी अकबरसाहजी आमखास में तखत ऊपर विराजमान हो रहे।