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गंग कवि वाक्य

उच्चारण: [ ganega kevi ]

उदाहरण वाक्य

  1. रहीम ने गंग कवि की बात का उत्तर बड़ी विनम्रतापूर्वक दिया-देनदार कोऊ और है, भेजत सो दिन रैन।
  2. गंग कवि ने रहीम से पूछा-सीखे कहां नवाबजू, ऐसी दैनी देन ज्यों-ज्यों कर ऊंचा करो त्यों-त्यों नीचे नैन।।
  3. गंग कवि को उसके दो पदों छंदों पर प्रसन्न होकर रहीम ने एक बार छत्तीस लाख रुपए दे दिए थे ।
  4. उनकी दानशीलता और विनम्रता से प्रभावित होकर गंग कवि ने एक बार उनसे यह दोहा कहा-' सीखे कहाँ नवाब जू, ऐसी दैनी दैन।
  5. ‘संस्कृति के चार अध्याय ' में हिन्दी भाषा के विकास पर श्री रामधारी सिंह दिनकर अकबर के दरबारी कवि गंगाधर उर्फ गंग कवि (1538-1625 ई.) के खड़ी बोली में लिखित “चंद छंद बरनन की महिमा” नामक एक पुस्तक के गद्यांश का उल्लेख करते हैं-“सिद्धि श्री 108 श्री श्री पातसाहिजी श्री दलपतिजी अकबरसाहजी आमखास में तखत ऊपर विराजमान हो रहे।
  6. ‘संस्कृति के चार अध्याय ' में हिन्दी भाषा के विकास पर श्री रामधारी सिंह दिनकर अकबर के दरबारी कवि गंगाधर उर्फ गंग कवि (1538-1625 ई.) के खड़ी बोली में लिखित “एक 'चंद छंद बरनन की महिमा” नामक एक गद्य पुस्तक के अंश का उल्लेख करते हैं-“सिद्धि श्री 108 श्री श्री पातसाहिजी श्री दलपतिजी अकबरसाहजी आमखास में तखत ऊपर विराजमान हो रहे।
  7. ‘सं स्कृति के चार अध्याय ' में हिन्दी भाषा के विकास पर श्री रामधारी सिंह दिनकर अकबर के दरबारी कवि गंगाधर उर्फ गंग कवि (1538-1625 ई.) के खड़ी बोली में लिखित “चंद छंद बरनन की महिमा” नामक एक पुस्तक के गद्यांश का उल्लेख करते हैं-“ सिद्धि श्री 108 श्री श्री पातसाहिजी श्री दलपतिजी अकबरसाहजी आमखास में तखत ऊपर विराजमान हो रहे।
  8. ‘ सं स्कृति के चार अध्याय ' में हिन्दी भाषा के विकास पर श्री रामधारी सिंह दिनकर अकबर के दरबारी कवि गंगाधर उर्फ गंग कवि (1538-1625 ई.) के खड़ी बोली में लिखित “ चंद छंद बरनन की महिमा ” नामक एक पुस्तक के गद्यांश का उल्लेख करते हैं-“ सिद्धि श्री 108 श्री श्री पातसाहिजी श्री दलपतिजी अकबरसाहजी आमखास में तखत ऊपर विराजमान हो रहे।
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