गोवर्धन मठ वाक्य
उच्चारण: [ gaoverdhen meth ]
उदाहरण वाक्य
- गोवर्धन मठ के अंतर्गत दीक्षा प्राप्त करने वाले सन्यासियों के नाम के बाद ' आरण्य' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उक्त संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है।
- आनंद नाम का ब्रह्मचारी ज्योतिर्मठ का, चैतन्य नाम का ब्रह्मचारी शृंगेरीमठ, प्रकाश नाम का ब्रह्मचारी गोवर्धन मठ अर्थात पूर्व का तथा स्वरूप नाम का ब्रह्मचारी द्वारिका का।
- गोवर्धन मठ, पुरी के पीठाधीश्वर जगत गुरू शंकराचार्य स्वामी निष्चलानंद महाराज ने इस अवसर पर आशीष वचन में लोगों को मांस-मंदिरा जैसी सामाजिक बुराईयों से बचने की सलाह दी।
- कहते हैं, शंकर ने अपने मत के प्रचारार्थ भारतभ्रमण करते समय चार मठों की स्थापना की थी जिनमें उक्त श्रृंगेरी मठ के अतिरिक्त उत्तर में जोशीमठ, पूर्व में गोवर्धन मठ तथा पश्चिम में शारदामठ नामों के थे।
- कहते हैं, शंकर ने अपने मत के प्रचारार्थ भारतभ्रमण करते समय चार मठों की स्थापना की थी जिनमें उक्त श्रृंगेरी मठ के अतिरिक्त उत्तर में जोशीमठ, पूर्व में गोवर्धन मठ तथा पश्चिम में शारदामठ नामों के थे।
- जब देश में वैदिक सनातन हिंदू धर्म पर बौद्ध धर्म हावी हो रहा था, विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण शुरू हो गए थे, तब आदि शंकराचार्य ने चार मठों-श्रृंगेरी मठ, ज्योतिर्मठ, शारदा मठ और गोवर्धन मठ की स्थापना की।
- डॉ. सिंह ने संत समागम मे पधारे गोवर्धन मठ, पुरी के जगत्गुरू शंकराचार्य स्वामी निष्चलानंद सरस्वती सहित देश भर से आए संत महात्माओं का स्वागत करते हुए कहा कि इनके आगमन से छत्तीसगढ़ की धरती धन्य हुई है।
- पूरे भारत की यात्रा करने के पश्चात देश के चारो दिशाओं में एक-एक पीठ स्थापित किए जो पूर्व में पुरीधाम में गोवर्धन मठ, पश्चिम में द्वारकाधाम में शारदा मठ, उत्तर के योतिर्धाम में योतिर्मठ व दक्षिण के रामेश्वरम धाम में श्रृंगेरी मठ के नाम से विख्यात है।
- “ ज्योतिर्मठ ”, दक्षिण में “ शृंगेरी मठ ”, पूर्व में “ गोवर्धन मठ ” और पश्चिम में “ शारदा मठ ” और आदेश दिया कि इन मठों में सदैव एक के बाद दूसरे धर्मांअचार्य शंकराचार्य पद पर सुशोभित होते रहेंगे और भारत में धर्म की रक्षा करते रहेंगे।
- 20 वीं शताब्दी में ज्योर्तिमठ का गौरव उस समय पुनः लौटा जब 1941 में श्रृंगेरी, द्वारका शारदामठ, गोवर्धन मठ के तीनों शंकराचार्य के साथ-साथ अन्य तमाम विद्वानों, भारत धर्म महामण्डल के प्रकाण्ड विद्वानों आदि ने इस पीठ पर प्रकाण्ड विद्वान सन्यासी ब्रह्मानन्द सरस्वती का शंकराचार्य के रूप में अभिषेक कर दिया।