जाबालोपनिषद वाक्य
उच्चारण: [ jaabaalopenised ]
उदाहरण वाक्य
- जाबालोपनिषद में सर्वप्रथम आश्रम व्यवस्था (ब्रम्हचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास) का उल्लेख था.
- सर्वप्रथम ' जाबालोपनिषद ' में चरों आश्रम ब्रम्हचर्य, गृहस्त, वानप्रस्थ तथा संन्यास आश्रम का उल्लेख मिलता है।
- जाबालोपनिषद चौथे खण्ड में विदेहराज जनक जी ऋषि याज्ञवल्क्य जी से संन्यास के विषय जानकारी प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त करते हैं.
- आदि शंकर ने ब्रह्मसूत्र के भाष्य में पाँच अन्य उपनिषदों-श्वेताश्वतर कौषीतकि जाबालोपनिषद महानारायण तथा पिंगल उपनिषदों की भी चर्चा की है।
- जाबालोपनिषद के द्वितीय खण्ड में अत्रि मुनि एवं ऋषि याज्ञवल्क्य के संवाद के द्वारा आत्म साक्षात्कार से उसके महत्व को व्यक्त किया गया है तथा आत्मा को जानने का प्रयास संभव हो पाया है.
- जाबालोपनिषद संस्कृत भाषा में रचा गया एक महत्वपूर्ण उपनिषद हैं जिसमें प्राण विद्या का विशद वर्णन किया गया है इस उपनिषद में प्रश्न विद्या वार्तालाप को दर्शाया गया है प्रश्नों द्वारा ऋषि ने अनेक शंकाओं का समाधान किया है.
- जाबालोपनिषद छठे भाग में अनेकों ऋषि मुनियों का उदाहरण दिया गया है जिसमें से, श्वेतकेतु, ऋभु, आरूणि, दुर्वासा, निदाघ, जड़भरत, दत्तात्रेय, संवर्तक तथा रैवतक आदि योग्य संन्यासी हुए यह सभी संन्यास के मह्त्व को दर्शाते हैं.
- जाबालोपनिषद के पांचवें खण्ड में मुनि अत्रि संन्यासी जीवन के विषय में उसके यज्ञोपवीत का अर्थ, भिक्षा ग्रहण आदि पर याज्ञवल्क्य जी से ज्ञान प्राप्त करते हैं ऋषि याज्ञवल्क्य कहते हैं कि ब्राह्मण वही है जो यज्ञोपवीत को धारण करता है उसकी आत्मा ही उसका यज्ञोपवीत है.
- 13 ” style = color: blue > * / balloon > == संस्कार एवं वर्ण == द्विजातियों में गर्भाधान से लेकर [[उपनयन]] तक के संस्कार अनिवार्य माने गये हैं तथा स्नान एवं विवाह नामक संस्कार अनिवार्य नहीं हैं, क्योंकि एक व्यक्ति छात्र-जीवन के उपरान्त संन्यासी भी हो सकता है ([[जाबालोपनिषद]]) ।
- जाबालोपनिषद में कुछ विपरीत मत मिलते है, वहां अविमुक्त, वरणा और नासी का अलौकिक प्रयोग है, अविमुक्त को वरणा और नाशी के मध्य स्थित बताया गया है, वरणा को त्रुटियों का नाश करने वाला, और नाशी को पापो का नाश करने वाला बताया गया है, इस प्रकार काशी पापं से मुक्त करने वाली नगरी है.