जोगिया जनूबी पट्टी वाक्य
उच्चारण: [ jogaiyaa jenubi petti ]
उदाहरण वाक्य
- कला और संस्कृति को जन से जोड़ने की बात बहुत की जाती है लेकिन इसका मूर्त रूप हमें `लोक-रंग ' में देखने को मिलता है जो पिछले तीन सालों से गौतमबुद्ध की निर्वाण स्थली कुशीनगर से करीब बीस किलोमीटर दूर जोगिया जनूबी पट्टी में आयोजित हो रहा है।
- सुभाष जी के इस कथन से सहमत होते हुए उन्हें यह सुझाव देना उचित लगता है कि उनकी समिति ने पिछले छः वर्षाें में लोक-कलाकारों और प्रशंसकों का जो सक्रिय समाज निर्मित किया है, उसे अपनी संस्था के माध्यम से जोगिया जनूबी पट्टी से बाहर भी ले जाने की जरुरत है.
- सुभाष जी के इस कथन से सहमत होते हुए उन्हें यह सुझाव देना उचित लगता है कि उनकी समिति ने पिछले छः वर्षाें में लोक-कलाकारों और प्रशंसकों का जो सक्रिय समाज निर्मित किया है, उसे अपनी संस्था के माध्यम से जोगिया जनूबी पट्टी से बाहर भी ले जाने की जरुरत है.
- कुशीनगर के जोगिया जनूबी पट्टी गाँव में बाजारवाद, शहरीकरण और भूमंडलीकरण के वर्तमान उच्छेदक दौर में लगभग विलुप्त होने के कगार पर पहंुच चुकी लोक कलाओं और उसके कलाकारों को जीवित मंच प्रदान करने के लिए आयोजित ‘लोकरंग-2013' का दो दिवसीय उत्सव-मेला इस अहसास को तीव्रता से जगाने में सफल रहा कि हम वर्तमान में कहाँ हैं और क्या-कुछ खोते जा रहे हैं.
- लोक गायक और कलाकार, पुरबी के बादशाह स्वर्गीय महेन्दर मिसिर की स्मृति को समर्पित, कथाकार सुभाष चन्द्र कुशवाहा के गाँव जोगिया जनूबी पट्टी (कुशीनगर) में गत १५-१६ मई को सम्पन्न लोक-कलाओं का अनूठा रंगारंग समागम छठां लोकरंग-2013 देखते हुए रेणु की कहानियों की वह आत्मीय और रागपूर्ण दुनिया याद आ रही थी, जो जीवन को सामूहिकता और अन्तरंगता से जीने से बनी है.
- कुशीनगर के जोगिया जनूबी पट्टी गाँव में बाजारवाद, शहरीकरण और भूमंडलीकरण के वर्तमान उच्छेदक दौर में लगभग विलुप्त होने के कगार पर पहंुच चुकी लोक कलाओं और उसके कलाकारों को जीवित मंच प्रदान करने के लिए आयोजित ‘ लोकरंग-2013 ' का दो दिवसीय उत्सव-मेला इस अहसास को तीव्रता से जगाने में सफल रहा कि हम वर्तमान में कहाँ हैं और क्या-कुछ खोते जा रहे हैं.
- लोक गायक और कलाकार, पुरबी के बादशाह स्वर्गीय महेन्दर मिसिर की स्मृति को समर्पित, कथाकार सुभाष चन्द्र कुशवाहा के गाँव जोगिया जनूबी पट्टी (कुशीनगर) में गत १ ५-१ ६ मई को सम्पन्न लोक-कलाओं का अनूठा रंगारंग समागम छठां लोकरंग-2013 देखते हुए रेणु की कहानियों की वह आत्मीय और रागपूर्ण दुनिया याद आ रही थी, जो जीवन को सामूहिकता और अन्तरंगता से जीने से बनी है.