नन्दकिशोर नवल वाक्य
उच्चारण: [ nendekishor nevl ]
उदाहरण वाक्य
- इसका चुनाव प्रायः हर पत्रिका में आने लगा है, नन्दकिशोर नवल ने तो कसौटी का एक अंक ही निकाला … क्लासिक उपन्यास कौन-कौनसे हैं ।
- चर्चित हिन्दी आलोचक श्री नन्दकिशोर नवल जी ने जोर देकर कहा कि ‘ भारत में आज भी मुसलमान एक ‘ मुसलमान ' के रूप में जाना जाता है-यह इतिहास का सच है।
- पर यदि पिछली पीढ़ी यानी नामवर जी परमानन्द जी या नन्दकिशोर नवल और मैनेजर पांडे जैसे वरिष्ठ आलोचकों की आलोचना को छोड़ दें तो आज की आलोचना किसी नतीजे पर पहुँचती नहीं दिखती।
- शिवशंकर सिंह नन्दकिशोर नवल, ज्ञानेन्द्रपति अध्यक्ष शिवदेव मंत्री, आयोजन-समिति इतने वर्षों बाद इस परिपत्र को दोबारा पढ़ते हुए बेसाख़्ता हँसी आती है और आश्चर्य होता है कि 1970 में हिन्दी के लेखकों ने इस परिपत्र को गम्भीरता से लिया था।
- (कई वर्ष बाद जब काँग्रेस पार्टी के पैसा-जुटाऊ जुगाड़बाज़ नेता ललितनारायण मिश्र की एक सभा में उन पर बम फेंका गया था तो यही शिवशंकर सिंह, जो नन्दकिशोर नवल के साथ 1970 में ' जन विरोधी राजनीति का मुकाबला '
- नामवर सिंह जैसे मूर्धन्यों के अलावा मलयज, विजयदेव नारायण साही, विष्णु खरे, मैनेजर पाण्डेय, नन्दकिशोर नवल, वागीश शुक्ल, रमेशचन्द्र शाह, कुँवर नारायण, पुरुषोत्तम अग्रवाल, कृष्ण कुमार, मदन सोनी आदि ने ऐसी आलोचना लिखी है ।
- यह निंदन-जो उपलब्ध के पिष्टपेषण के सफलतावादी नुक्ते से निकला है, अपने लक्ष्य में इस हद तक सफल है कि ज़माने भर के नामवर सिंह और नन्दकिशोर नवल और परमानंद श्रीवास्तव मज़े से बैठे-बैठे उसे सुनते हैं और काव्यपाठ पूरा हो जाने पर कवि की पीठ ठोंकते हैं.
- गंभीर आलोचनात्मक विमर्श में गोपाल राय की ‘हिन्दी कहानी का इतिहास-2 ', कमला प्रसाद की ‘आलोचना का लोकतंत्र', नन्दकिशोर नवल की ‘मैथिलीशरण गुप्त', कृष्णदत्त पालीवाल की ‘हिन्दी का आलोचनापर्व', पद्मा शर्मा की ‘समकालीन कहानी में सांस्कृतिक मूल्य', प्रमिला के.पी. की ‘स्त्री अस्मिता और हिन्दी कविता' और विश्वरंजन की संपादित ‘आलोचना का नेपथ्य' चर्चा में रहीं।
- अब यह निंदन-जो उपलब्ध के पिष्टपेषण के सफलतावादी नुक्ते से निकला है, अपने लक्ष्य में इस हद तक सफल है कि ज़माने भर के नामवर सिंह और नन्दकिशोर नवल और परमानंद श्रीवास्तव मज़े से बैठे-बैठे उसे सुनते हैं और काव्यपाठ पूरा हो जाने पर कवि की पीठ ठोंकते हैं.
- रामविलास शर्मा, नगेन्द्र, नामवर सिंह, विद्यानिवास मिश्र, मैनेजर पांडेय, शिवकुमार मिश्र, कुंवरपाल सिंह, चन्द्रबलीसिंह, परमानन्द श्रीवास्तव, नन्दकिशोर नवल आदि की पीढ़ी के आलोचकों ने कितना वर्तमान पर लिखा और कितना अतीत पर लिखा? इसका यदि हिसाब फैलाया जाएगा तो अतीत का पलड़ा ही भारी नजर आएगा।