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पराई आग वाक्य

उच्चारण: [ peraaeaaga ]

उदाहरण वाक्य

  1. होलिका दहन और दीवाली के पटाखे भी ऐसा विराट और प्रभावी दृश्य कहाँ उत्पन्न करते हैं जो सर्वनाशी पराई आग करती है।
  2. पराई आग तापने के अपने ही मजे हैं, भले ही यह आग मई-जून की प्राणलेवा गर्मी में ही क्यों न लगी हो।
  3. “अरे नहीं यार ऐसे आन्दोलनों का यही तो मजा है कि शरीफ तो शरीफ, चोर भी अपनी रोटी सेंक डालते हैं पराई आग में!”
  4. “ अरे नहीं यार ऐसे आन्दोलनों का यही तो मजा है कि शरीफ तो शरीफ, चोर भी अपनी रोटी सेंक डालते हैं पराई आग में! ”
  5. इसे कहते है पराई आग मे हाथ जलाना……………सच मे हंसी नही रुक रही और यही सोच रही हूं हमारे देश के मुख्य चैनल पर आना होता तो क्या होता?
  6. राज चड्ढा का व्यंग्य-आग तापने का सुख पराई आग तापने के अपने ही मजे हैं, भले ही यह आग मई-जून की प्राणलेवा गर्मी में ही क्यों न लगी हो।
  7. खुदगर्ज़ दुनिया में ये, इंसान की पहचान हैजो पराई आग में जल जले,वो इंसान हैअपने लिए जीए तो क्या जीए-२तू जी ऐ दिल जमाने के लिएअपने लिएबाज़ार से जमाने के,कुछ भी न हम खरींदेगे-२हाँ, बेचकर खुशी अपनी औरों के गम खरीदेंगेबुझते दिए जलाने के लिए-२यू जी ऐए दिल,ज़माने
  8. खुदगर्ज़ दुनिया में ये, इंसान की पहचान है जो पराई आग में जल जाये,वो इंसान है अपने लिए जीए तो क्या जीए-२ तू जी ऐ दिल जमाने के लिए अपने लिए बाज़ार से जमाने के, कुछ भी न हम खरींदेगे-२ हाँ, बेचकर खुशी अपनी औरों के गम खरीदेंगे बुझते दिए जलाने के लिए-२ तू जी ऐ दिल,ज़माने के लिए अपने लिए..
  9. खुदगर्ज़ दुनिया में ये, इंसान की पहचान हैजो पराई आग में जल जाये,वो इंसान हैअपने लिए जीए तो क्या जीए-२तू जी ऐ दिल जमाने के लिएअपने लिएबाज़ार से जमाने के,कुछ भी न हम खरींदेगे-२हाँ, बेचकर खुशी अपनी औरों के गम खरीदेंगेबुझते दिए जलाने के लिए-२तू जी ऐ दिल,ज़माने के लिएअपने लिए..अपनी ख़ुदी को जो समझा,उसने ख़ुदा को पहचानाआज़ाद फ़ितरतें इंसां, अंदाज़ क्या भला मानासर ये नहीं झुकाने के लिए-२तू जी ऐ दिल,ज़माने के लिएअपने लिए..
  10. कि आप को किसी की मदद की आवश्यकता नहीं है...बल्कि आप बहुतों से सशक्त नज़र आ रहीं हैं...आप तो बस धडल्ले से लिखें...यहाँ इस अंतरजाल में हर तरह की महिलाएं हैं....और सच पूछिए तो अधिकतर अति-साधारण स्त्रियाँ हैं....एक बार आपका जब परिचय होगा सबसे तब आप स्वयं सोचेंगी...आप बेकार में घबरा रहीं थीं...मैं सच कहतीं हूँ... वाणी जी...त्यौहार तो बस दो-चार दिनों के होते हैं...आप उनसे उतनी तो मोहलत ले ही सकतीं थीं...:) मिश्र जी की समस्या समझ में आती है...उन्होंने अच्छा ही किया जो किया...कभी कभी पराई आग में अपने हाथ भी जल जाते हैं...
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