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बेग़ाना वाक्य

उच्चारण: [ baanaa ]

उदाहरण वाक्य

  1. वहाँ इतने अपरिचित लोगों की उपस्थिति, चहल-पहल और सजावट, सब कुछ उसे बेग़ाना लग रहा था।
  2. जो मिली भी थी खुशियाँ, मेरा हक ही तो था, फिर, बेग़ाना उनसे मुझे क्यों कर दिया ।
  3. वहाँ खाली बैठे-बैठे मोबाइल से कुछ तस्वीरें लीं और एक वीडिओ बनाया. आप भी देखें.इति. बचपन हर ग़म से बेग़ाना होता है-!
  4. [यह नज़्म का सारांश है, पूरा पढ़ने के लिए फ़ीड प्रविष्टी शीर्षक पर चटका लगायें...] नाज़ हार माटी ख़ाकसार शाख़ बेग़ाना शिक़स्त चाँद हसीन जीत वह कौन है?
  5. आज उन्होने भी कह दिया हमें अपना बेग़ाना, जिनको दिलो-जान से हमने अपना माना, वो सुनाते गए हम सुनते गए, हमारी बेवफ़ाई, और हमसे बनाया भी न गया कोई वफ़ाई का बहाना।
  6. चित्र-गूगल साभार गुनगुनाना-अपनी मौज में, अपनी मौज को हस्ती से बेग़ाना होना, मस्ती का अफ़साना बनना क्वार की आहटों में तुम गा रही हो फाग आबिदा, मौसम-बेमौसम एक तुम्हारी ही आवाज़ भली एक तुम्हारी ही लाग… जाने कैसे गुहारती हो वो हर हाल सुन ही लेता है...
  7. इस बेरहम जीने को? एक नज़र ज़रा सी, खुली आंखों मुस्काना किसी का इस तरह खुद से खुद को बेग़ाना बनाता, धम्म ऊंचे पहाड़ की नोक खींचे लिए जाता और वहां से नीचे फिर कहीं और गहरे छोड़े आता, मन-मोहिल, चोटिल फिर भी सारंगियों के सुर तनी बजती चलतीं, उस ज़रा सा में, हाय, ऐसा क्या होता कि आत्मा खिल-खिल सुधखोयी खिलखिलाती, सजी-संवरी खुद में क्या-क्या बजाती रहती.
  8. तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जातेजो वाबस्ता हुए तुमसे वो अफ़साने कहाँ जातेनिकल कर दैर-ओ-क़ाबा से अगर मिलता न मैख़ानातो ठुकराए हुए इन्साँ ख़ुदा जाने कहाँ जातेतुम्हारी बेरुख़ी ने लाज रख ली बादाख़ाने कीतुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जातेचलो अच्छा हुआ काम आ गयी दीवानगी अपनीवगरना हम ज़माने को ये समझाने कहाँ जाते‘क़तील ' अपना मुक़द्दर ग़म से बेग़ाना अगर होतातो फिर अपने-पराए हमसे पहचाने कहाँ जाते
  9. गुमसुम, ग़ायब रहती है, महीनों ख़बर नहीं होती कहां भागी, या हुआ, सारे सम्बन्ध खत्म कर लिए? के ख़्यालों में दबे, पुराने दु:खों की तरह लगभग भूल-भुला जाती है, और जीवन अनजानी हवाओं व सड़कों पर पहचानी आदतों के बासी रुमाल में लिपटा किसी उडूपी रेस्तरां में दोपहर के सस्ते खाने और बझे हुए हैं के बेमतलब बहानों में बीतता चलता है, तभी एकदम दीखती है सामने की खाली कुर्सी पर, फीकी मुस्कान का एक बेग़ाना गाना फुसफुसाती, थाली के निवालों में अटकी उंगलियों की कंपकंपाहट पढ़ती, आत्मा के अभेद उजाड़ों को कैसे, कितनी जल्दी बेमतलब किये जाती.
  10. गुमसुम, ग़ायब रहती है, महीनों ख़बर नहीं होती कहां भागी, या हुआ, सारे सम्बन्ध खत्म कर लिए? के ख़्यालों में दबे, पुराने दु:खों की तरह लगभग भूल-भुला जाती है, और जीवन अनजानी हवाओं व सड़कों पर पहचानी आदतों के बासी रुमाल में लिपटा किसी उडूपी रेस्तरां में दोपहर के सस्ते खाने और बझे हुए हैं के बेमतलब बहानों में बीतता चलता है, तभी एकदम दीखती है सामने की खाली कुर्सी पर, फीकी मुस्कान का एक बेग़ाना गाना फुसफुसाती, थाली के निवालों में अटकी उंगलियों की कंपकंपाहट पढ़ती, आत्मा के अभेद उजाड़ों को कैसे, कितनी जल्दी बेमतलब किये जाती.
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