भावविवेक वाक्य
उच्चारण: [ bhaavevivek ]
उदाहरण वाक्य
- भावविवेक या भाव्य (तिब्बती भाषा: slob-dpon bha-vya or skal-ldan/legs-ldan, c.500-c.578), बौद्ध धर्म के माध्यमक शाखा के स्वतंत्रिक परम्परा के संस्थापक दार्शनिक थे।
- 210), का विचार है कि भावविवेक उन प्रथम तर्कशास्त्रियों में से हैं जिन्होने 'प्रयोग-वाक्य' के रूप में विधिवत उपपत्ति (formal syllogism) का प्रयोग किया।
- इतना ही नहीं, जितने भी सूत्रवचन विज्ञप्तिमात्रता का प्रतिपादन करते हुए से दृष्टिगोचर होते हैं, भावविवेक के मतानुसार उनका वैसा अर्थ नहीं है।
- आचार्य भावविवेक, ज्ञानगर्भ, शान्तरक्षित, कमलशील आदि स्वातन्त्रिक माध्यमिकों का इस देशना की नेयार्थता और नीतार्थता के बारे में प्रासङ्गिक माध्यमिकों से मतभेद हैं।
- परंतु छठी शताब्दी के एक बौद्ध आचार्य भावविवेक या भव्य ने अपने ग्रंथ माध्यमिकहृय में वेदांत दर्शन का विवेचन करते हुए गौड़पाद की एक कारिका उद्धृत की है।
- परंतु छठी शताब्दी के एक बौद्ध आचार्य भावविवेक या भव्य ने अपने ग्रंथ माध्यमिकहृय में वेदांत दर्शन का विवेचन करते हुए गौड़पाद की एक कारिका उद्धृत की है।
- * [[भावविवेक बौद्धाचार्य | भावविवेक]] विज्ञानवादियों से पूछते हैं कि उस परिकल्पित लक्षण का स्वरूप क्या है, जो लक्षणनि: स्वभाव होने के कारण नि: स्वभाव कहलाता है।
- * [[भावविवेक बौद्धाचार्य | भावविवेक]] विज्ञानवादियों से पूछते हैं कि उस परिकल्पित लक्षण का स्वरूप क्या है, जो लक्षणनि: स्वभाव होने के कारण नि: स्वभाव कहलाता है।
- आचार्य भावविवेक, ज्ञानगर्भ, शान्तरक्षित आदि स्वातन्त्रिक माध्यमिकों के अनुसार प्रज्ञापारमितासूत्रों में आर्यशतसाहस्त्रिका प्रज्ञापारमिता आदि कुछ सूत्र नीतार्थ हैं, क्योंकि इनमें सभी धर्मों की परमार्थत: नि: स्वभावता निर्दिष्ट है।
- उसकी जैसी व्याख्या आचार्य भावविवेक करते हें, उसी तरह का अर्थ मध्यमकालोक में भी वर्णित है, अत: ऐसा प्रतीत होता है कि आचार्य शान्तरक्षित भी व्यवहार में स्वलक्षणत: सत्ता स्वीकार करते हैं।