महाराजा जसवंत सिंह वाक्य
उच्चारण: [ mhaaraajaa jesvent sinh ]
उदाहरण वाक्य
- इस किले का निर्माण कार्य कई वर्षों तक चला और महाराजा जसवंत सिंह (१ ६ ३ ८-७ ८) के समय में पूर्ण हुआ ।
- महाराजा जसवंत सिंह को जोधपुर में देवता की भांति पूजा जाता था और उनके प्रति वहां के निवासियों का सम्मान जसवंत थड़ा के रूप में देखा जा सकता है।
- जयपुर के मिर्जा राजा जयसिंह की मृत्य पर जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह जी ने निम्न पीछोला कहा-घंट न वाजै देहरां, संक न मानै शाह | एकरस्यां फिर आवज्यो, माहुरा जेसाह ||
- १ ८ वीं शताब्दी के अंतिम चरण में जब मारवाड़ राज्य के राज सिंहासन के प्रश्न को लेकर महाराजा जसवंत सिंह एंव भीम सिंह के मध्य संघर्ष चल रहा था तब महाराजा मानसिंह वर्षों तक जालौर दुर्ग में रहे।
- उस समय महाराजा जसवंत सिंह जी दिल्ली के मुग़ल बादशाह औरंगजेब की सेना में प्रधान सेनापति थे, फिर भी औरंगजेब की नियत जोधपुर राज्य के लिए अच्छी नहीं थी और वह हमेशा जोधपुर हड़पने के लिए मौके की तलाश में रहता था | सं.
- 1731 में गुजरात में मुग़ल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह को दबाने हेतु जसवंत सिंह जी को भेजा गया, इस विद्रोह को दबाने के बाद महाराजा जसवंत सिंह जी काबुल में पठानों के विद्रोह को दबाने हेतु चल दिए और दुर्गादास की सहायता से पठानों का विद्रोह शांत करने के साथ ही वीर गति को प्राप्त हो गए |
- क्योंकि शहंशाह अकबर अपने जीते जी राजपूत राजाओं को आगरा के मुगल दरबार में हर वक्त कमर झुकाये रहने की आदत लगा गया था, या शाही खानदान की औरतों के महलों की रखवाली करने का काम सौंप गया था (चौकीदारी का यह काम जयपुर के राणा संवाई जयसिंह, बुन्देला लोक गीतों के नायक वीर छत्रसाल और राठौरों के महाराजा जसवंत सिंह ने शाहजहां और औरंगजेब के जमाने में बखूबी किया) ।
- १ ३ ६ पर राजस्थान की रानियों के उच्च चरित्र व ऊँचे नैतिक मूल्यों व ऊँची भावनाओं की तारीफ़ करते हुए “ सती तथा जौहर ” प्रकरण पर चर्चा करते हुए जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह का बीच युद्ध से लौटने पर उनकी रानी द्वारा किले के दरवाजे नहीं खोलने की घटना का जिक्र किया | ऐतिहासिक तौर पर उन्होंने इस घटना का जिक्र करके कोई गलती नहीं की पर विद्वान लेखक ने इस घटना को लिखते हुए ऐतिहासिक तथ्यों के साथ सरासर अन्याय कर डाला | उन्होंने लिखा-