मुसहफ़ी वाक्य
उच्चारण: [ mushefei ]
उदाहरण वाक्य
- शेख़ ग़ुलाम हमदानी मुसहफ़ी (१ ७ ५ ०-१ ८ २ ४) मूलतः अमरोहा के रहने वाले थे.
- जैसे कि मुसहफ़ी का देहांत वर्ष 1824 में हो गया था तो ज़ाहिर है कि उन्होंने इससे पहले ही यह लिखा होगा कि-
- पुराने ढब की उर्दू लिखने वाले उस्तादों मीर सोज़, सौदा और ख़ुद बाबा मीर तकी मीर के बाद मुसहफ़ी आख़िरी उस्ताद माने जाते हैं.
- जैसे कि मुसहफ़ी का देहांत वर्ष 1824 में हो गया था तो ज़ाहिर है कि उन्होंने इससे पहले ही यह लिखा होगा कि-जोड़-तोड़ आवे हैं क्या ख़ूब नतारा केतईं
- उनकी शायरी में मुसहफ़ी जैसे कोमल और मधुर भाव और मोमिन जैसी फ़ारसी तरकीबों का समिश्रण एक अजीब सा लुत्फ़ पैदा कर देता है लेकिन उनके यहाँ मीर जैसा सोज़ो गुदाज़ नहीं है।
- यहाँ के कवियों में “ मीर ”, “ मीर हसन ”, “ सौदा ”, “ इंशा ”, “ मुसहफ़ी ”, “ जुरअत ”, के पश्चात “ आतिश ” (1847 ई.
- जैसे कि मुसहफ़ी का देहांत वर्ष 1824 में हो गया था तो ज़ाहिर है कि उन्होंने इससे पहले ही यह लिखा होगा कि-जोड़-तोड़ आवे हैं क्या ख़ूब नतारा केतईं फौज़े दुश्मन को सेबूंहीं लेते हैं सरदार को तोड़ ज़ाहिर है कि यहाँ उनका मतलब सिराजुद्दौला के मीर ज़ाफर के बारे में भी है और टीपू सुल्तान के साज़िद के बारे में भी हैं.
- दिल्ली की स्थिति खराब होते ही “ फ़ुगाँ ”, “ सौदा ”, “ मीर ”, “ हसन ” (1787 ई.) और कुछ समय बाद “ मुसहफ़ी ” (1825 ई.), “ इंशा ” (1817 ई.), “ जुरअत ” और अन्य कवि अवध पहुँच गए और वहाँ काव्यरचना का एक नया केंद्र बन गया जिसको “ लखनऊ स्कूल ” कहा जाता है।