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श्रवणबेलगोल वाक्य

उच्चारण: [ shervenbelegaol ]

उदाहरण वाक्य

  1. श्रवणबेलगोल के शिलालेख नं. ४ ० तथा ४ २, ४ ३, ४ ७ और ५ ० वें अभिलेख में भी उक्त कथन की पुनरावृत्ति है।
  2. श्रवणबेलगोल के कुछ शिलालेखों से इतना पता चलता है कि आप श्री भद्रबाहु श्रुतकेवली, उनके शिष्य चन्द्रगुप्तमुनि के वंशज पद्मनन्दि अपर नाम कोन्डकुन्द मुनिराज उनके वंशज उमास्वाति की वंशपरम्परा में हुए थे।
  3. श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महिला महासभा की स्थापना श्रवणबेलगोल में जनवरी २००६ में आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के सान्निध्य में आयोजित महासभा रजत अध्यक्षता अधिवेशन में श्रीमती सरिता महेन्द्र कुमार जैन की अध्यक्षता एवं डॉं.
  4. मारसिंह के उत्तराधिकारी राचमल्ल (चतुर्थ) थे, जिनके मंत्री चामुण्डराज ने श्रवणबेलगोल के विन्ध्यगिरि पर चामुण्डराय बस्ति निर्माण कराई और गोमटेश्वर की उस विशाल मूर्त्ति का उद्घाटन कराया जो प्राचीन भारतीय मूर्त्तिकला का एक गौरवशाली प्रतीक है।
  5. जैन परंपराओं के अनुसार, चंद्रगुप्त अपने अंतिम दिनों में जैन-मुनि हो गए| चन्द्र-गुप्त अंतिम मुकुट-धारी मुनि हुए, उनके बाद और कोई मुकुट-धारी(शासक) दिगंबर-मुनि नही हुए | अतः चन्द्र-गुप्त का जैन धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है | स्वामी भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोल चले गए।
  6. जैन परंपराओं के अनुसार, चंद्रगुप्त अपने अंतिम दिनों में जैन-मुनि हो गए | चन्द्र-गुप्त अंतिम मुकुट-धारी मुनि हुए, उनके बाद और कोई मुकुट-धारी (शासक) दिगंबर-मुनि नही हुए | अतः चन्द्र-गुप्त का जैन धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है | स्वामी भद्रबाहु के साथ श्रवणबेलगोल चले गए।
  7. इसका शुभारंभ महिला महासभा के उद्देश्यानुसार अल्पसाधन वाली श्रवणबेलगोल की दिगम्बर जैन बहनों को, श्रीमती सरिता महेन्द्र कुमार जैन (चेन्नई), श्रीमती संतोष देवी प्रकाश चन्द बड़जात्या (चेन्नई), एवं श्रीमती कमला धाकड ा (चेन्नई), द्वारा प्रदत्त ५० सिलाई मशीनें स्वरोजगार साधन उपलब्ध कराने के लिए स्वस्तिश्री चारुकीर्ति भट्टारक महास्वामी जी के करकमलों से प्रदत्त कराकर हुआ।
  8. इसका शुभारंभ महिला महासभा के उद्देश्यानुसार अल्पसाधन वाली श्रवणबेलगोल की दिगम्बर जैन बहनों को, श्रीमती सरिता महेन्द्र कुमार जैन (चेन्नई), श्रीमती संतोष देवी प्रकाश चन्द बड़जात्या (चेन्नई), एवं श्रीमती कमला धाकड ा (चेन्नई), द्वारा प्रदत्त ५० सिलाई मशीनें स्वरोजगार साधन उपलब्ध कराने के लिए स्वस्तिश्री चारुकीर्ति भट्टारक महास्वामी जी के करकमलों से प्रदत्त कराकर हुआ।
  9. श्रवणबेलगोल के २५८ वें शिलालेख में भी यही बात कही गई है उनके वंशरूपी प्रसिद्ध खान से अनेक मुनिरूप रत्नों की माला प्रकट हुई उसी मुनि रत्नमाला के बीच में मणि के समान कुन्दकुन्द के नाम से प्रसिद्ध ओजस्वी आचार्य हुए उन्हीं के पवित्र वंश में समस्त पदार्थों के ज्ञाता उमास्वामी मुनि हुए, जिन्होंने जिनागम को सूत्ररूप में ग्रथित किया यह प्राणियों की रक्षा में अत्यन्त सावधान थे।
  10. श्रवणबेलगोल के २ ५ ८ वें शिलालेख में भी यही बात कही गई है उनके वंशरूपी प्रसिद्ध खान से अनेक मुनिरूप रत्नों की माला प्रकट हुई उसी मुनि रत्नमाला के बीच में मणि के समान कुन्दकुन्द के नाम से प्रसिद्ध ओजस्वी आचार्य हुए उन्हीं के पवित्र वंश में समस्त पदार्थों के ज्ञाता उमास्वामी मुनि हुए, जिन्होंने जिनागम को सूत्ररूप में ग्रथित किया यह प्राणियों की रक्षा में अत्यन्त सावधान थे।
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