श्रृंखला की कड़ियां वाक्य
उच्चारण: [ sherrinekhelaa ki kedeiyaan ]
उदाहरण वाक्य
- “21 यह विकृततर होती कहानी चांद में 1935 से 1938 तक ÷ अपनीबात ' शीर्षक से लगातार छपती रही है जो 1942 में श्रृंखला की कड़ियां शीर्षक से प्रकाशित हुई।
- ' ' 21 यह विकृततर होती कहानी चांद में 1935 से 1938 तक ÷ अपनीबात ' शीर्षक से लगातार छपती रही है जो 1942 में श्रृंखला की कड़ियां शीर्षक से प्रकाशित हुई।
- महादेवी वर्मा का नारियों के प्रति चिंतन की प्रामाणिकता उनकी ‘ श्रृंखला की कड़ियां ' (1942) निबंध संग्रह में संगृहीत निबंधों में देखा जा सकता है, जिसमें भारतीय नारी विषयक चिंतन व्यवस्थित है.
- यदि ऐसी निडरता स्त्री के उस अमानवीय या देवी रूप का लक्षण है जिसकी चर्चा महादेवी वर्मा ने ' श्रृंखला की कड़ियां ' में जगह-जगह की है, तो हम इस रूप के मनोवैज्ञानिक निहितार्थों की कल्पना कर सकते हैं।
- देर से कविता के इलाके में आना भी उनकी उस जिद के कारण ही संभव हुआ है जब वे श्रृंखला की कड़ियां तोड़ कर कविता लिखने का व्रत ठानती हैं और यह करते हुए वे इस अनुष्ठान में पाठक को भी न्योतती हैं:
- देश के प्रसिद्ध कवि श्री रविन्द्र नाथ टैगोर के विचारों को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी श्रृंखला की कड़ियां आपस में गुंथी होती है और उस श्रृंखला (चेन) की ताकत का आकलन उसकी सबसे कमजोर कड़ी से की जाती है।
- तुलसी का कलियुग वर्णन, महादेवी वर्मा की श्रृंखला की कड़ियां, मॆथिलीशरण गुप्त की साकेत वाली ऊर्मिला ऒर यशोधरा, सुभद्रा कुमारी चॊहान की वीरांगना लक्ष्मीबाई का गुणगान, प्रेमचन्द के उपन्यास, जॆनेन्द्र की कृतियां ऒर कितनी ही अन्य पहले की कृतियों को पढ़ा ऒर समझा जा सकता हॆ ।
- वह क्षेत्र जहां हम हैं, हमारा समाज है और जिसमें पागलखाने हैं, इसमें एक ओर से मनोचिकित्सकों की कड़ी जुड़ी तो दूसरी ओर समाजसुधारक जैसे वर्ग के लोग सक्रिय हुए, इन्हें अभिन्न करने के लिए, या इसे एक ही श्रृंखला की कड़ियां दिखाने के लिए मानव जाति को परामर्शदाता-
- ÷ स्मृति की रेखाएं ', ÷ अतीत के चलचित्र ', ÷ मेरा परिवार ' और ÷ श्रृंखला की कड़ियां ' के साथ उनकी कविताओं को पढ़ने पर लगता है कि कविता में अभिव्यक्त पीड़ा, वेदना, विरह, दुख निजी नहीं व्यापक मानवीय संवेदना के ही रूपान्तरण हैं।
- तुलसी का कलियुग वर्णन, महादेवी वर्मा की श्रृंखला की कड़ियां, मॆथिलीशरण गुप्त की साकेत वाली ऊर्मिला ऒर यशोधरा, सुभद्रा कुमारी चॊहान की वीरांगना लक्ष्मीबाई का गुणगान, प्रेमचन्द के उपन्यास, जॆनेन्द्र की कृतियां ऒर कितनी ही अन्य पहले की कृतियों को पढ़ा ऒर समझा जा सकता हॆ ।