साथ हो तुम वाक्य
उच्चारण: [ saath ho tum ]
उदाहरण वाक्य
- चाहती तो हूँ कि प्रिय! तुम्हा... बहुत यकीन है...मुझे बहुत यकीन है....तुमपे और अपने प्यार पे भी. पर..... पता नहीं क्यूँ फिर भी.... जब कभी यह ख्याल भी मन में आ जाता है कि, तुम किसी और के साथ हो तुम किसी...
- पूछो न है मेरे दिल में क्या जो मेरे साथ हो तुम अपना भी मैं पता क्या जानूँ हूँ मैं तो प्यार में गुम पूछो न है मेरे दिल में क्या जो मेरे साथ हो तुम अपना भी मैं पता क्या जानूँ हूँ मैं तो प्यार में गुम
- पूछो न है मेरे दिल में क्या जो मेरे साथ हो तुम अपना भी मैं पता क्या जानूँ हूँ मैं तो प्यार में गुम पूछो न है मेरे दिल में क्या जो मेरे साथ हो तुम अपना भी मैं पता क्या जानूँ हूँ मैं तो प्यार में गुम
- मेरा मानना है कि-मैं अकेला इस लड़ाई को जीत नहीं सकता, अगर साथ हो तुम तो, मैं हार नहीं सकता, बता दो आज तुम मेरी ताकत, मेरी साख बन कर, मैं लड़ रहा हूं कमेरों के लिए, तुम साथ हो ना..
- मुझे बहुत यकीन है....तुमपे और अपने प्यार पे भी. पर..... पता नहीं क्यूँ फिर भी.... जब कभी यह ख्याल भी मन में आ जाता है कि, तुम किसी और के साथ हो तुम किसी और के पास हो तो........ कुछ दरक सा जाता है दिल कसम... तुम्हीं कहो मैं क्या लिखूँ..
- मुझे बहुत यकीन है.... तुमपे और अपने प्यार पे भी. पर..... पता नहीं क्यूँ फिर भी.... जब कभी यह ख्याल भी मन में आ जाता है कि, तुम किसी और के साथ हो तुम किसी और के पास हो तो........ कुछ दरक सा जाता है दिल कसम...
- हाँ, गुज़ारे थे कभी दो-तीन पल कुछ हसीं, कुछ शोख, कुछ रंगीन पल हर तरह की वासना से हीन पल अब कहाँ मिलते हैं वो शालीन पल भोग, लिप्सा, मोह के संगीन पल कब, किसे दे पाए हैं तस्कीन पल आपका आना, ठहरना, लौटना इक मुक़म्मल हादसा थे तीन पल साथ हो तुम तो मुझे लगत...
- हाँ, गुज़ारे थे कभी दो-तीन पल कुछ हसीं, कुछ शोख, कुछ रंगीन पल हर तरह की वासना से हीन पल अब कहाँ मिलते हैं वो शालीन पल भोग, लिप्सा, मोह के संगीन पल कब, किसे दे पाए हैं तस्कीन पल आपका आना, ठहरना, लौटना इक मुक़म्मल हादसा थे तीन पल साथ हो तुम तो मुझे लगत
- हाँ, गुज़ारे थे कभी दो-तीन पल कुछ हसीं, कुछ शोख, कुछ रंगीन पल हर तरह की वासना से हीन पल अब कहाँ मिलते हैं वो शालीन पल भोग, लिप्सा, मोह के संगीन पल कब, किसे दे पाए हैं तस्कीन पल आपका आना, ठहरना, लौटना इक मुक़म्मल हादसा थे तीन पल साथ हो तुम तो मुझे लगता है ज्यों हो गए हैं सब मेरे आधीन पल कँपकँपाते होंठ, ऑंखों में हया किस तरह भूलेंगे ये रंगीन पल दिल में रोशन रख उमीदों के 'चिराग़' छू न पाएंगे तुझे ग़मगीन पल
- खुश हूं कि गंगा की मचलती लहरों पर वक् त की हवाओं से लड़कर मेरे वि श् वास का दि या जगमगा रहा है दशाश् वमेध घाट पर है कई उंचे हाथों के स् तंभ रौशनी, फूल और आस् था का संगम और हाथों में है अर्घ् य के लि ए पावन गंगा का जल साक्षी है दशों दि शाएं कि मेरे मानस में साथ हो तुम हरदम आज कार्तिक पूरनमासी की रात मैं समर्पित करती हूं खुद को... तुम् हें और... मैं बहुत खुश हूं....