सिमोन द बोउवा वाक्य
उच्चारण: [ simon d bouvaa ]
उदाहरण वाक्य
- ये क्या पीली आंधी, छिन्नमस्ता, सिमोन द बोउवा की पुस्तक ‘ दि सेकेंड सेक्स ' के अनुवाद ‘ स्त्री उपेक्षिता ' की लेखिका प्रभा जी नहीं रहीं....
- इनमें नोम चोमस्की और सिमोन द बोउवा जैसे भी नामचीन लोग भी थे और ऐसे तमाम लोगों की नजर में सिद्धार्थ शंकर रे एक रक्त पिपासू मुख्यमंत्री हो गये थे।
- सिमोन द बोउवा ने अपनी पुस्तक ' द सेकेंड सेक्स ' में स्त्री को ' अन्य ' की संज्ञा दी थी. उनका मानना था कि वह मात्र ऑब्जेक्ट यानी कर्म है कर्त्ता नहीं.
- ये क्या पीली आंधी, छिन्नमस्ता, सिमोन द बोउवा की पुस्तक ‘दि सेकेंड सेक्स' के अनुवाद ‘स्त्री उपेक्षिता' की लेखिका प्रभा जी नहीं रहीं.... मैंने छिन्नमस्ता और ‘स्त्री उपेक्षिता' दोनों को पढा है ।
- मेरे लिए नारीवादी का मतलब उन लोगो से है जो स्त्री पुरुष भेदभाव को खत्म करना चाहते हैं और इसके लिए अपने स्तर पर प्रयास भी कर रहे है लेखिका सिमोन द बोउवा ने तो कहा था कि हर लडकी को नारीवादी होना चाहिए ।
- पहली बार इतने डिटेल में उन्होंने इस चीज को रखा, कि सेक्स सिर्फ का आनंद नहीं, उसके अहं की तुष्टि का, उसके पुरुषार्थ की तुष्टि का भी आनंद है और वह स्त्री को एक पैसिव चीज समझता है जिसका खंडन बहुत पहले सिमोन द बोउवा कर चुकी थीं-सेकेंड सेक्स लिखकर कि सेक्स में स्त्री पैसिव नहीं होती है।
- यह तीन भारतों का संघर्ष है स्त्रियां ही कैसे बचतीं इससे वे तसलीमा का नाम लें या सिमोन द बोउवा का उनकी आकांक्षाएं, उनके स्वप्न, उनका जीवन उन्हें किसी ओर तो ले ही जाएगा ठीक वैसे ही जैसे माक्र्सवाद, क्रांति, परिवर्तन का रूपक रचते-रचते पुरुषों का यह बौद्धिक समाज व्यवस्था से संतुलन और तालमेल बिठा कर बड़े कौशल से अपनी मध्यवर्गीय क्षुद्रताओं का जीवन जीता है....
- यह तीन भारतों का संघर्ष है स्त्रियां ही कैसे बचतीं इससे वे तसलीमा का नाम लें या सिमोन द बोउवा का उनकी आकांक्षाएं, उनके स्वप्न, उनका जीवन उन्हें किसी ओर तो ले ही जाएगा ठीक वैसे ही जैसे माक्र्सवाद, क्रांति, परिवर्तन का रूपक रचते-रचते पुरुषों का यह बौद्धिक समाज व्यवस्था से संतुलन और तालमेल बिठा कर बड़े कौशल से अपनी मध्यवर्गीय क्षुद्रताओं का जीवन जीता है....
- वैसे आधुनिक नारीवाद के सिद्धांत का पहला मील का पत्थर पहली बार 1946 में फ्रांसीसी में और 1953 में अंग्रेजी में प्रकाशित सिमोन द बोउवा (Simone de Beauvoir) की कृति “द सेकेण्ड सेक्स” था, जिसमें व्यापक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण और नारी आन्दोलन की एक स्पष्ट दिशा के अभाव के बावजूद नारी उत्पीड़न के कई सूक्ष्म पहलुओं को रेखांकित किया गया था और यह प्रस्थापना दी गयी थी कि स्त्रियों की मुक्ति में ही पुरूषों की भी मुक्ति है जो स्वयं पुरूष स्वामित्व की मानवद्रोही मानसिकता के दास हैं ।