अर्देशिर ईरानी वाक्य
उच्चारण: [ aredeshir eaani ]
उदाहरण वाक्य
- अर्देशिर ईरानी की कंपनी इंपीरियल मूवी टोन के बैनर तले रिलीज हुई इस फिल्म से जुड़े विज्ञापनों में यह भी दर्शाया जाता था कि यह संपूर्ण बोलती, नाच-गाने के दृश्यों से भरपूर फिल्म है।
- “ आलमआरा ” फिल्म इतिहास कि पहली बोलती फिल्म बनी और इसको निर्देशित करने वाले अर्देशिर ईरानी के साथ ही इस फिल्म के मास्टर विट्ठल, जुबेदा, पृथ्वीराज आदि भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए.
- अर्देशिर ईरानी की 14 मार्च 1931 को प्रदर्शित पहली बोलती फिल्म आलमआरा के तबले की एक जोड़ी और हारमोनियम से शुरू हुए इस सफर को वर्तमान में कई वाद्ययंμाों की धुनें निकाल देने वाले सिंक्रोजियन तक नाप डाला है पंकज राग ने।
- अर्देशिर ईरानी की 14 मार्च 1931 को प्रदर्शित पहली बोलती फिल्म आलमआरा के तबले की एक जोड़ी और हारमोनियम से शुरू हुए धुनों के सफर को वर्तमान में कई वाद्ययन्त्रों की धुनें निकाल देने वाले सिंक्रोजियन तक नाप डाला है पंकज राग ने।
- दशक खत्म होते न होते सिनेमा में आवाज़ आई और अर्देशिर ईरानी के निर्देशन में नायक राजकुमार और बंजारन नायिका की प्रेम कहानी ' आलम आरा' आई. पारसी थियेटर की मैलोड्रामा शैली से प्रभावित 'आलम आरा' में सात गीत थे और यहीं से हिन्दी सिनेमा और गीतों का अटूट नाता शुरु हुआ जो आज तक बेरोकटोक जारी है.
- अर्देशिर ईरानी के साझीदार अब्दुल अली यूसुफ़ अली ने फ़िल्म के प्रीमियर की चर्चा करते हुए लिखा था-‘ ज़रा अंदाजा लगाइए, हमें कितनी हैरत हुई होगी यह देखकर कि फ़िल्म प्रदर्शित होने के दिन सुबह सवेरे से ही मैजेस्टिक सिनेमा के पास बेशुमार भीड़ जुटना शुरू हो गई थी और हालात यहाँ तक पहुँचे कि हमें ख़ुद को भी थिएटर में दाख़िल होने के लिए काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी।
- मण्टो का लेखन आज की तरह का साक्षात्कार वाला या महानायक के साथ एक दिन टाइप का नहीं था, बल्कि दूधिये से पानी मिला दूध देने की शिकायत करती नसीम बानो, अपने समय के प्रतापी निर्माता अर्देशिर ईरानी के खस्ता दिनों में मण्टो का उनसे अपनी तनख्वाह के लिए गिड़गिड़ाना, प्राण और श्याम की कुलदीप कौर से तकरार भरी उन्सियत, अशोक कुमार का दंगों के दिनों में बेधड़क मुसलिम बस्ती में घुस जाना-इन शब्दचित्रों में बेहद गरमाहट थी।
- मंटो का लेखन आज की तरह का साक्षात्कार वाला या महानायक के साथ एक दिन टाइप का नहीं था, बल्कि दूधिये से पानी मिला दूध देने की शिकायत करती नसीम बानो, अपने समय के प्रतापी निर्माता अर्देशिर ईरानी के खस्ता दिनों में मंटो का उनसे अपनी तन्ख्वाह के लिये गिड़गिड़ाना, प्राण और श्याम की कुलदीप कौर से तकरार भरी उन्सियत, अशोक कुमार का दंगों के दिनों में बेधड़क मुसलिम बस्ती में घुस जाना-इन शब्द चिμाों में बेहद गरमाहट थी।