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केनोपनिषद वाक्य

उच्चारण: [ kenopenised ]

उदाहरण वाक्य

  1. केनोपनिषद में भी ब्रह्मविद्या का हेमवती उमा के रूप में प्रकट होना चर्चित है-“ स तिस्मन्नेनकाशे स्त्रियमाजगाम बहुशोभमाना युमाम् हैमवतीम ” (केनोपनिषद, 3,12) इसी प्रकार पुराणों में वामन अवतार की चर्चा है, और ऋग्वेद में भी विष्णुतीन पादप्रक्षेप में अपने आश्रित जनों पर अनुग्रह करते हैं-” यस्यत्री पूर्णा मधुना पादान्यक्षीय माणा स्वधाया मदंन्ति।
  2. केनोपनिषद का यह प्रश्न कि “ मनुष्य किसकी इच्छा से बोलता है ”, या फिर ये प्रश्न कि “ क्या मृ्त्यु के पश्चात भी कुछ ऎसा है! जो कि बचा रह जाता है? ” उपनिषदों से जन्मी यह भारतीय दृ्ष्टि कालांतर में अद्वैत वेदांत तक आते आते एक व्याप्त स्थापना के रूप में फलित होती गई।
  3. केनोपनिषद में कहा गया है: “वहाँ न तो चक्षु-इन्द्रिय पहुँच सकती है, न वाक्-इन्द्रिय पहुँच सकती है, न मनस ही जिस प्रकार से इसको बतलाया जाए कि यह ऐसा है, वह प्रकार न तो हम स्वयं अपनी बुध्दि से जानते हैं, न दूसरों से सुनकर ही जानते हैं।” भगवान बुध्द ने भी अपने-आप को ऐसी ही असमर्थता की स्थिति में पाया।
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