खाण्डव वन वाक्य
उच्चारण: [ khaanedv ven ]
उदाहरण वाक्य
- पाण्डवों की अनुपस्थिति में धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को युवराज बना दिया परन्तु जब पाण्डवों ने वापिस आकर अपना राज्य वापिस मांगा तो उन्हें राज्य के नाम पर खण्डहर रुपी खाण्डव वन दिया गया।
- खाण्डव वन दहन में आदिवासी नाग जाति को भस्म करने में कृष्ण एवं अर्जुन द्वारा अग्नि का सहयोग करने से लेकर कंस-षिषुपाल-जयद्रथ वध, एकलव्य का '' अगुंठा '', घटोत्कच-बर्बरीक-बभ्रूवाहन प्रसंग तक।
- उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर दुर्वासा ने उनसे कहा-हे शिवगणो! तुम हस्तिनापुर के निकट खाण्डव वन में स्थित शिववल्लभ क्षेत्र में जाकर तपस्या करो तो तुम भगवान आशुतोष की कृपा से पिशाच योनि से मुक्त हो जाओगे.
- परन्तु इन्द्र मुझे ऐसा करने नहीं देते, वे अपने मित्र तक्षक नाग, जो कि खाण्डव वन में निवास करता है, की रक्षा करने के लिये मेघ वर्षा करके मेरे तेज को शान्त कर देते हैं तथा मुझे अतृप्त रह जाना पड़ता है।
- भगवान परशुराम ने खाण्डव वन में जो पांच शिवलिंग स्थापित किए थे, उनमें से तीन शिवलिंग गढ़मुक्तेश्वर क्षेत्र में ही हैं-पहला शिवलिंग मुक्तीश्वर महादेव का, दूसरा मुक्तीश्वर महादेव के पीछे झारखण्डेश्वर महादेव का और तीसरा शिवलिंग कल्याणेश्वर महादेव का है.
- १ ३ (खाण्डव वन दाह के समय इन्द्र द्वारा अर्जुन पर ऐन्द्रास्त्र के प्रयोग से जल धारा आदि की सृष्टि करना, अर्जुन द्वारा वायव्यास्त्र की सहायता से ऐन्द्रास्त्र का निवारण ; अर्जुन द्वारा बाणों से समस्त देवताओं के आयुधों का निवारण), सभा ८ ०.
- महात्मा विदुर पाण्डवों को अपने साथ लाए और राज्य सभा में लिये गये निर्णय के अनुसार महाराज धृतराष्ट्र ने उन्हें आधा राज्य देने की घोषणा कर ते हुए धर्मराज युधिष्ठर को निर्देश दिया कि वह अपने भाईयों के साथ जाकर खाण्डव वन को आबाद कर वहां से अपना राज्य चला सकते हैं।
- जिसे न दण्डकारण्य का पता है, न खाण्डव वन का और न ही नैमिषारण्य का, उस हिन्दुस्तानी को भी पता ही है कि इस देश में कभी तपोवनों का जाल बिछा हुआ था और तपोवन नाम से ही जाहिर है कि तपस्या करने के ये स्थान वनों में हुआ करते थे।
- ४ ८ (खाण्डव वन के दाह से संतुष्ट अग्नि द्वारा अर्जुन को गाण्डीव धनुष व बाणों से पूर्ण इषुधि आदि प्रदान करने का उल्लेख), १ ३ ०. ३ १ (पाण्डव कुमारों की कूप में पतित मुद्रिका को द्रोण द्वारा शर की सहायता से बाहर निकालने का वर्णन), १ ३ १.
- लित थी यौवन की ज्यों जलता हो खाण्डव वन लपट पुंज उठते प्रदग्ध अति बूँद बूँद पिघलाते तन या प्रतप्त था हवन कुण्ड ज्यों आम्र शाख सा जलता तन लपटें पकड़ रही लपटों को आतुर हो होकर हर क्षण नीचे वसुधा ऊपर अम्बर झूला बना पुष्प उपवन पेंग बढ़ा संपृक्त प्राण-द्वय पल पल छूते सप्त गगन वाजि बना वह काल खण्ड,