गायत्री छन्द वाक्य
उच्चारण: [ gaaayetri chhend ]
उदाहरण वाक्य
- पहले अध्याय में त्रिपदिक छन्द परम्परा का उल्लेख गायत्री छन्द से लेकर उष्णिक, ककुप्, गंगी, माहिया (टप्पा), हायकू (लेखक ने हाइकु के लिए चार वर्तनियों के प्रचलन का उल्लेख करते हुए इसी वर्तनी का उपयोग किया है) और अन्त में जनक छन्द तक किया है।
- प्रारम्भ में ॐ देव के प्राप्ति और मांग के पूर्ति हेतु जब लिपिबद्ध किया गया तो यह मन्त्रवित् लिपिबद्धता 24 मात्राओं में जाकर पूरी हो गयी अर्थात् यह ॐ देव मन्त्र गायत्री छन्द में लिपिबद्ध हो गया, यानी इस मन्त्र का छन्द तो गायत्री हुआ मगर इसका अभीष्ट ॐ देव हुआ ।
- ऋग् वेद का उपवेद आयुर्वेद है ब्रह्मा देवता गोत्र अभि तथा गायत्री छन्द रक्तवर्ण पद्म पत्र समनेत्र विभक्त कंठ व भेद चर्चा, श्रावक, चर्चक, श्रवणीयपार, श्रमपार, जय रथक्रम, दंडक्रम आदि पारायण विधि है शाखा 1 आश्वलायनी, 2 सां यायनि, 3 शाकला, 4 बाष्कला, 5 मांडुकेयी।
- गायत्री नामक छन्द में उल्लिखित होने के कारण मन्त्र के अभीष्ट ' ॐ देव, को विस्थापित कर दिया जाय? हटा दिया जाय-मिटा दिया जाय? और उनके स्थान पर गायत्री छन्द के नाम पर स्त्रीलिंग देवी की काल्पनिक और झूठी आकृतियाँ-मूर्तियाँ गढ़-गढ़वाकर गायत्री देवी घोषित कर-करवा देना क्या सही और उचित है? क्या यह देव-द्रोहिता नहीं है? अब आप स्वयं पढे-ज़ानें-समझें और निर्णय लें-दें कि क्या ' ॐ देव ' विस्थापन रूप देव द्रोहिता ही असुरता नहीं है?
- ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्! '' को गायत्री छन्द मात्र में उद्धृत होने के कारण तथाकथित गायत्री मन्त्र, तथाकथित गायत्री देवी, तथाकथित गायत्री परिवार आदि-आदि को काल्पनिक रूप से पैदा करके (हालाँकि उन्हीं सबों के तरह से ही पूर्व में भी कुछ ने ऐसा ही किया था जिसको बताकर) और ॐ देव को विस्थापित करके उसके स्थान पर काल्पनिक देवी को स्थापित कर उसे गायत्री नाम दे रखा है ।