ज्ञानाश्रयी शाखा वाक्य
उच्चारण: [ jenyaanaasheryi shaakhaa ]
उदाहरण वाक्य
- ज्ञानाश्रयी शाखा, प्रेमाश्रयी शाखा, कृष्णाश्रयी शाखा और रामाश्रयी शाखा, प्रथम दोनों धाराएं निर्गुण मत के अंतर्गत आती हैं, शेष दोनों सगुण मत के।
- इस साजिश में निर्गुण धारा की ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रति उस विरक्ति की स्पष्ट झलक है जो इस शाखा की रचनाओं का साहित्य होना स्वीकार नहीं करती.
- -br / > '' ' ज्ञानाश्रयी शाखा '' ' br / > पहली शाखा की ' निर्गुण काव्यधारा ' या ' निर्गुण सम्प्रदाय ' नाम दिया गया है।
- उनके काव्य पर निर्गुण ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रवर्तक संत कबीर, निर्गुण प्रेमाश्रयी शाखा के प्रवर्तक मलिक मुहम्मद जायसी, रामकाव्य परंपरा के महाकवि तुलसीदास एवं कृष्ण काव्य परंपरा के महाकवि सूरदास एवं रसखान आदि कवियों का व्यापक प्रभाव पड़ा है।
- और यह तो सचमुच आश्चर्य की बात है कि कबीर जैसे प्रेम के अद्भुत दीवाने को आचार्य शुक्ल जैसे उद्भट विद्वान ने ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के पाले में बैठाकर उनकी रचनाओं को मानक साहित्य मानने से इन्कार कर दिया।
- और यह तो सचमुच आश्चर्य की बात है कि कबीर जैसे प्रेम के अद्भुत दीवाने को आचार्य शुक्ल जैसे उद्भट विद्वान ने ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के पाले में बैठाकर उनकी रचनाओं को मानक साहित्य मानने से इन्कार कर दिया।
- जैसा ऊपर कहा जा चुका है, भक्ति के उत्थानकाल के भीतर हिन्दी भाषा में कुछ विस्तृत रचना पहले पहल कबीर की ही मिलती है, अत: पहले निर्गुण संप्रदाय की ' ज्ञानाश्रयी शाखा ' का संक्षिप्त विवरण आगे दिया जाता है जिसमें सर्वप्रथम कबीरदास जी सामने आते हैं।
- ज्ञानाश्रयी शाखा में सन्त कबीर के बाद सन्त रविदास या रैदास का नाम उल्लेखनीय है| कबीर के गुरु रामानन्द जी के बारह शिष्य थे, उनमें से एक थे रैदास या रविदास (ये रामदास,गुरु रविदास आदि नामों से भी प्रचलित थे)| इनका जन्म 1376 मे काशी में हुआ था| रैदास कब
- दूसरी बात यह कि ÷ यों ही ज्ञानी बने हुए ' का मतलब क्या है? ज्ञानी तो आपने ही बनाया ÷ ज्ञानाश्रयी शाखा ' से नाम जोड़ कर! देखने की बात यह है कि क्या कबीर की निम्नलिखित पंक्तियां शुद्धतावाद की वर्जनाओं से घिरे यथास्थितिवादियों के अलगाववाद के विरुद्ध लोकजागरण का संदेश दे रही हैं या मूर्खता मिश्रित अहंकार की वृद्धि कर रही हैंद्र 1.
- ज्ञानाश्रयी शाखा में सन्त कबीर के बाद सन्त रविदास या रैदास का नाम उल्लेखनीय है| कबीर के गुरु रामानन्द जी के बारह शिष्य थे, उनमें से एक थे रैदास या रविदास (ये रामदास,गुरु रविदास आदि नामों से भी प्रचलित थे)| इनका जन्म 1376 मे काशी में हुआ था| रैदास कबीर के बाद रामानंद जी के शिष्य हुए, ऐसा उनकी इस रचना से जान पड़ता है, जिसमें उन्होंने कबीर का जिक्र किया है: