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डॉ भावना कुँअर वाक्य

उच्चारण: [ do bhaavenaa kunar ]

उदाहरण वाक्य

  1. अगर विशुद्ध रूप से भाषा की कोमलता देखनी हो तो डॉ भावना कुँअर का यह हाइकु-poem > वो मृग छौना बहुत ही सलोना कुलाचें भरे ।
  2. श्री रामेश्वर काम्बोज ‘ हिमांशु ' और डॉ भावना कुँअर के संपादन में अयन प्रकाशन से चंदन मन शीर्षक से प्रकाशित हाइकु संकलन चन्दनमन ' में अठारह हाइकुकारों के हाइकु संकलित हैं।
  3. डॉ भावना कुँअर और डॉ हरदीप कौर सन्धु का ्यह सम्मान केवल इन दो रचनाकारों का ही सम्मान नहीं वरन् उन सबका सम्मान है जो जो अच्छी रचनाओं को पढ़ना और रचना चाहते हैं।
  4. पुस्तक परिचय-हाइकु संग्रह चंदनमन से श्री रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु ' और डॉ भावना कुँअर के संपादन में अयन प्रकाशन से चंदन मन शीर्षक से प्रकाशित हाइकु संकलन चन्दनमन' में अठारह हाइकुकारों के हाइकु संकलित हैं।
  5. डॉ भावना कुँअर का एक हाइकु देखें-‘सुबक पड़ी / कैसी थी वो निष्ठुर / विदा की घड़ी (पृष्ठ-5) क्षण का सत्य-क्षण की अनुभूति-सद्य प्रभाव और शाश्वत सत्य की ओर संकेत-कितना स्पष्ट एवं मनोरम चित्र है! यह
  6. साठोत्तरी हिन्दी ग़ज़ल में विद्रोह के स्वर: डॉ भावना कुँअर पृष्ठ: 168 (सज़िल्द) मूल्य: 200 रुपये, संस्करण: 2009 प्रकाशक: अयन प्रकाशन, 1 / 20 महरौली, नई दिल्ली-110020
  7. डॉ भावना कुँअर ; क्योंकि स्वयं सहृदय कवयित्री भी हैं, इसलिए इस शोध के बहाने ‘ ग़ज़ल की दुनिया से कुछ चुने हुए अशआर के मोती सामान्य पाठक को भी तृप्त कर सकेंगे, ऐसी आशा है ।
  8. भारत से बाहर हाइकु के क्षेत्र में विशेष कार्य करने के लिए डॉ भावना कुँअर और डॉ हरदीप सन्धु को ‘ हाइकु-रत्न सम्मान ' प्रदान किया ।लोकार्पण समारोह में ‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते' (पुष्पा जमुआर), तीसरी यात्रा (वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज), सच बोलते शब्द (राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बन्धु), हाथी के दांत (ब्रजनंदन वर्मा), जेठ की धूप (रामचन्द्र यादव), चीखती लपटें (सनातन कुमार बाजपेयी), खामोशियों की झील में (आलोक भारतीय), डॉ परमेश्वर गोयल लघुकथा शिखर सम्मान का इतिहास (सतीशराज पुष्करणा) इत्यादि अनेक पुस्तकों का लोकार्पण हुआ ।
  9. डॉ भावना कुँअर का एक हाइकु देखें-‘ सुबक पड़ी / कैसी थी वो निष्ठुर / विदा की घड़ी (पृष्ठ-५) क्षण का सत्य-क्षण की अनुभूति-सद्य प्रभाव और शाश्वत सत्य की ओर संकेत-कितना स्पष्ट एवं मनोरम चित्र है! यह ‘ विदा ' किसी विशेष रिश्ते से नहीं बँधी है-अपार विस्तार है-माता, पिता, भाई, बहन, बन्धु, प्रिय, परिजन-सभी इस विशाल दायरे में आकर समा गए हैं-केन्द्र-बिन्दु है-‘ विदा की घड़ी ' … अनुपम खूबसूरत हाइकु है।
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