परमानंद दास वाक्य
उच्चारण: [ permaanend daas ]
उदाहरण वाक्य
- इसके अतिरिक्त परमानंद दास, कृष्णदास गोविंद स्वामी, छीतस्वामी व चतुर्भुज दास आदि भी अष्टछाप कवियों में आते हैं किंतु कवित्व की दृष्टि से सूरदास सबसे ऊपर हैं।
- अवसर पर, वृंदा नामक गोपी के मुख से परम भगवत श्री परमानंद दास का काव्य मुखरित हो उठता है-"फिर पछतायेगी हो राधा, कित ते, कित हरि, कित ये औसर, करत-प्रेम-रस-बाधा!बहुर गोपल
- विट्ठलनाथ अपने पिता के चार शिष्य कुंभनदास, सूरदास, परमानंद दास और कृष्णदास तथा अपने चार शिष्य चतुर्भुजदास, गोविन्द स्वामी, छीतस्वामी और नंददास को मिलाकर इन्होंने ' अष्टछाप ' की स्थापना की।
- ऐसे अवसर पर, वृंदा नामक गोपी के मुख से परम भगवत श्री परमानंद दास का काव्य मुखरित हो उठता है-“फिर पछतायेगी हो राधा, कित ते, कित हरि, कित ये औसर, करत-प्रेम-रस-बाधा! बहुर गोपल भेख कब धरि हैं, कब इन कुंजन, बसि हैं!
- ऐसे अवसर पर, वृंदा नामक गोपी के मुख से परम भगवत श्री परमानंद दास का काव्य मुखरित हो उठता है-“फिर पछतायेगी हो राधा, कित ते, कित हरि, कित ये औसर, करत-प्रेम-रस-बाधा!बहुर गोपल भेख कब धरि हैं, कब इन कुंजन, बसि हैं!यह जड़ता तेरे जिये उपजी, चतुर नार सुनि हँसी हैं!रसिक गोपाल सुनत सुख उपज्यें आगम, निगम पुकारै,”परमानन्द” स्वामी पै आवत, को ये नीति विचारै! गोपी के ठिठोली भरे वचन सुन, राधाजी, अपने प्राणेश्वर, श्री कृष्ण की और अपने कुमकुम रचित चरण कमल लिए, स्वर्ण-नुपूरों को छनकाती हुईं चल पड़ती हैं!