मानस रोग वाक्य
उच्चारण: [ maanes roga ]
उदाहरण वाक्य
- हे तात! अब मानस रोग सुनिए, जिनसे सब लोग दुःख पाया करते हैं॥14॥ मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला।
- यदि वही सर्पगंधा पौधे के रूप में दिया जाए तो उल्टे मानस रोग की अचूक औषधि बन जाता है ।
- ये सब मानस रोग ' इच्छा ' और ' द्वेष ' के भेद से दो भागों में विभक्त किये जा सकते हैं ।
- ये सब मानस रोग ' इच्छा ' और ' द्वेष ' के भेद से दो भागों में विभक्त किये जा सकते हैं ।।
- फिर कहिए कि श्रुतियों में प्रसिद्ध सबसे महान् पुण्य कौन सा है और सबसे महान् भयंकर पाप कौन है॥3॥ मानस रोग कहहु समुझाई।
- वे भी साधना के अहंकार और मोह में फँसकर मुनि से वानर बन गए-विरूप हो गए, इसलिए तुलसी काकभुशुंडि के माध्यम से मानस रोग और उसके निदान का बखान करते हैं।
- काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, मान, मद, शोक, चिन्ता, उद्वेग, भय, हर्ष, विषाद, अभ्यसूया, दैन्य, मार्त्सय और दम्भ ये मानस रोग हैं ।।
- सुखों का अर्थ आरोग्य और दुखों का अर्थ व्याधि है, शरीर के रोग जैसे ज्वर, कास, कुष्ठ आदि, मानस रोग जैसे योषउन्माद = हिस्टीरिया, पागलपन (उन्माद) आदि. शरीर रोगों के प्रभाव से मन में भी विकार पैदा होते है, चिकित्सक को चाहिए की रोग का मूल कारण केवल शरीर में है या केवल चित्त में, या दोनों में है, अनेक रोग भी एक दुसरे के उत्पादक होकर कारण परम्परा उत्त्पन्न करते है, इस प्रकार रोग का प्रारंभ से अंत तक जानना आवश्यक है.