राममूर्ति त्रिपाठी वाक्य
उच्चारण: [ raamemureti teripaathi ]
उदाहरण वाक्य
- जबकि ‘ राधामाधव ' की पांडुलिपि में सत्यप्रकाश मिश्र, जानकी वल्लभ शास्त्री, रमाकांत रथ और डॉ. राममूर्ति त्रिपाठी की टिप्पणियां पहले से मौजूद थीं।
- धरोहर के अंतर्गत ‘ धर्म का आधारःआचरण ' (अज्ञेय) तथा आर्ष परंपरा और हजारी प्रसाद द्विवेदी ' (राममूर्ति त्रिपाठी) आलेख भारतीय काव्य तथा दर्शन को विस्तार से व्यक्त करते हैं।
- युगेश शर्मा का आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी को याद करता आलेख तथा ओम प्रकाश मंगोला, सुरेन्द्र बंसल, कृष्ण चन्द्र गोस्वामी तथा कृष्ण चन्द्र गुप्त की वैचारिकी वर्तमान संदर्भो को अतीत से जोड़कर उनकी व्याख्या करते में सफल रही है।
- आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी जी जैसे महान साहित्यकार की अद्वितीय कलम ने ' पुरोवाक' लिखा था.“रागाकाश” के विमोचन में बडे साहित्यकारों आये और समीक्षायें हुई थीं और अब २ साल बाद 'स्व.सेठ घनश्यामदास बंसल स्मृति 2009-10 का पुरस्कार' मिल रहा है..जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई.
- आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी जी जैसे महान साहित्यकार की अद्वितीय कलम ने ' पुरोवाक ' लिखा था. “ रागाकाश ” के विमोचन में बडे साहित्यकारों आये और समीक्षायें हुई थीं और अब २ साल बाद ' स् व.स ेठ घनश्यामदास बंसल स्मृति 2009-10 का पुरस्कार ' मिल रहा है..
- डॉण् गणेष दत्त सारस्वत, डॉण् सूर्यदीन यादव, मुनीद्रजी, डॉण् परमलाल गुप्त, डॉण् बलविंदर कौर, डॉण् सियाराम तिवारी, डॉण् स्वर्ण किरण, डॉण् दीनानाथ शरण, डॉण् शरद नारायण करे, दामोदर स्वरूप विद्रोही, भगवानदास एजाज, डॉण् राममूर्ति त्रिपाठी, आचार्य भगवत दुबे, डॉण् गायत्री शरण मिश्र मराल जैसे शुभचिंतकों की प्रतिक्रियाओं से हमें काफी बल मिला है।
- अन्य रचनाओं में छापा कला प्रयोग और प्राविधि (ज्योति भट्ट), आनंद का अनहद (विनय उपाध्याय), परिवर्तन का उद्घोष स्लमडाॅग करोड़पति (अरविंद कुमार) भारत में अमरिका और युगांण्डा (आलोक पुराणिक), रंग निर्देशों के बदलते स्वरूप (देवेन्द्र राज ठाकुर) तथा निगम आगम एवं पुराण में सरस्वती (राममूर्ति त्रिपाठी) के आलेख पत्रिका की व्यापकता को स्पष्ट करते हैं।
- इसमें डॉ० राममूर्ति त्रिपाठी का ' नृत्य और संगीत कला: आस्वाद पक्ष', डॉ० त्रिवेणी दत्त शुक्ल का 'बुन्देली लोक जीवन के अप्रतिम कवि ईसुरी', डॉ० वीरेन्द्र सिंह यादव का 'हिन्दी दलित साहित्य में सौन्दर्यशास्त्र की अवधारणा', डॉ० सरोज सिंह का 'हिन्दी उपन्यास की समाजशास्त्रीय आलोचना: नाच्यौ बहुत गोपाल के विशेष संदर्भ में, डॉ० राजेश कुमार गर्ग का 'आठवें दशक की कहानी में महानगर चेतना', 'प्राचीन भारतीय संस्कारों की वर्तमान में प्रासंगिकता'-श्रीमती मनोज मिश्रा का आलेख शामिल किये गये हैं।
- साहू-जैन परिवार को जैसी प्रतिष्ठा ज्ञानपीठ के कारण मिली है, वैसी उसके शक्तिशाली अखबारों के कारण भी नहीं | आज ज्ञानपीठ पुरस्कार साहित्य का सर्वोच्च सम्मान है | मूर्तिदेवी पुरस्कार भी है लेकिन उसकी मान्यता अभी उतनी नहीं है | इस बार मूर्तिदेवी पुरस्कार डॉ. गोविंदचंद्र पाण्डेय और डॉ. राममूर्ति त्रिपाठी को मिला है | दोनों विद्वानों ने अपने-अपने क्षेत्र में गहन परिश्रम किया है और ग्रंथ लिखे हैं | लेकिन क्या बात है कि साहित्य के समारोह के मुकाबले पांडित्य का समारोह फीका-फीका होता है?