वनफूल वाक्य
उच्चारण: [ venful ]
उदाहरण वाक्य
- वसन्त बात मुझको क्या कहती मैं क्या उसको समझूँ? ह्रदय-वीणा के सप्त स्वर में मैं किस स्वर को ढूंढुं? किसने छेड़ा ये स्वर लहरी किस से हो गया यह भूल? जनम लिया मैं तुम्हारी तरह एक छोटा सा ' वनफूल ' ।।
- भाव मन की तराई में वनफूल से खिल रहे थे घने, मुस्कुराते हुए नैन पगडंडियों पर बिछे थे हुए शब्द को देखते आते जाते हुए राह में छोड़ सांचे, कदम जो गये उनके, अनुरूप ढलते रहे हैं सभी चाही अपनी नहीं एक पल अस्मिता कोई अध्याय खोला नया न कभी
- (सभी चित्र गूगल से साभार) जन कोलाहलों से दूर, निर्जन में, बागों में नहीं वन में, चमन की बहारों से दूर, प्रकृति के गोद में, वसुंधरा का प्यार जहाँ है, है सभी मेरे अनुकूल, जनम लिया मैं तुम्हारी तरह एक छोटा सा ' वनफूल ' ।।
- डॉ. साहब यह तो पता था कि ताऊ के मुखौटा के पीछे का चेहरा अलग होगा लेकिन आपने जो चित्र खींचा वह बहुत रोचक है-बहुत सुन्दर प्रस्तुति डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को latest post ' वनफूल '
- हिंदी कविता-संग्रह वनफूल / कन्हैया लाल सेठिया अग्णिवीणा / कन्हैया लाल सेठिया मेरा युग / कन्हैया लाल सेठिया दीप किरण / कन्हैया लाल सेठिया आज हिमालय बोला / कन्हैया लाल सेठिया खुली खिड़कियां चौड़े रास्ते / कन्हैया लाल सेठिया प्रतिबिम्ब / कन्हैया लाल सेठिया प्रणाम / कन्हैया लाल सेठिया मर्म / कन्हैया लाल सेठिया अनाम / कन्हैया लाल सेठिया निर्ग्रन्थ / कन्हैया लाल सेठिया स्वागत / कन्हैया लाल सेठिया देह-विदेह / कन्हैया लाल सेठिया आकाशा गंगा / कन्हैया लाल सेठिया
- किसी संक्रामक रोग की तरह आते हमें स्वप्न मोर न हमारी दीवार पर, न आंगन में लेकिन सपनों में नाचते रहते अविराम कहां-कहां की कर आते यात्रायें सपनों में ही … ठोकरों में लुढ़काते राजमुकुट और फिर चढ़कर बैठ जाते सिंहासनों पर … कभी उस तेज़ रौशनी में बैठ विशाल गोलमेज के चतुर्दिक बनाते मणि हथियाने की योजनायें कभी उसी के रक्षार्थ थाम लेते कोई पाषाणयुगीन हथियार कभी उन निरंतर नृत्यरत बालाओं से करते जुगलबंदी कभी वनदेवी के जूड़े में टांक आते वनफूल …
- आपकी दो दर्जन से अधिक काव्य-रचनाओं में प्रमुख हैं-हिन्दी काव्य कृतियाँ ‘ वनफूल ', ‘ मेरा युग ', ‘ अग्निवीणा ', ‘ प्रतिबिम्ब ', ‘ अनाम ', ‘ निर्गन्थ ', ‘ दीपकिरण ', ‘ मर्म ', ‘ आज हिमालय बोला ', ‘ खुली खिड़कियाँ चौड़े रास्ते ', ‘ प्रणाम ', ‘ त्रयी ' आदि और राजस्थानी काव्य-कृतियाँ हैं-‘ मींझर ', ‘ गलगचिया ', ‘ रमणिये रा सोरठा ', ‘ धर कूंचा धर मजलाँ ', ‘ कूँ कूँ ', ‘ लीलटांस ' आदि।