विष्णु धर्मसूत्र वाक्य
उच्चारण: [ visenu dhermesuter ]
उदाहरण वाक्य
- विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शांति, अपने स्वास्थ्यवर्द्धन और सर्व कल्याण के लिए तिल के छः प्रकार के प्रयोग पुण्यदायक व फलदायक होते हैं-तिल जल स्नान, तिल दान, तिल भोजन, तिल जल अर्पण, तिल आहुति और तिल उबटन मर्दन।
- विष्णु धर्मसूत्र ' कहा गया है कि पितरों के आत्मा की शांति, स्वयं के स्वास्थ्यवर्धन व सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं-तिल जल स्नान, तिल दान, तिल भोजन, तिल जल अर्पण, तिल-आहुति तथा तिल-उबटन मर्दन।
- विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शांति, अपने स्वास्थ्यवर्द्धन और सर्व कल्याण के लिए तिल के छः प्रकार के प्रयोग पुण्यदायक व फलदायक होते हैं-तिल जल स्नान, तिल दान, तिल भोजन, तिल जल अर्पण, तिल आहुति और तिल उबटन मर्दन।
- विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं-(1) तिल जल स्नान, (2) तिल दान, (3) तिल भोजन, (4) तिल जल अर्पण, (5) तिल आहुति, (6) तिल उबटन मर्दन।
- * विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं-तिल जल से स्नान करना, तिल दान करना, तिल से बना भोजन, जल में तिल अर्पण, तिल से आहुति, तिल का उबटन लगाना।
- विष्णु धर्मसूत्र [244] का कथन है कि रविवार को श्राद्ध करने वाला रोगों से सदा के लिए छुटकारा पा जाता है और वे जो सोम, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र एवं शनि को श्राद्ध करते हैं, क्रम से सौख्य (या प्रशंसा), युद्ध में विजय, सभी इच्छाओं की पूर्ति, अभीष्ट ज्ञान, धन एवं लम्बी आयु प्राप्त करते हैं।
- [303] विष्णु धर्मसूत्र [304] के मत से अमावस्या, तीन अष्टकाएँ एवं तीन अन्वष्टकाएँ, भाद्रपद के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी, जिस दिन चन्द्र मघा नक्षत्र में होता है, शरद एवं वसन्त श्राद्ध के लिए नित्य कालों के द्योतक हैं और जो भी व्यक्ति इन दिनों में श्राद्ध नहीं करता वह नरक में जाता है।
- विष्णु धर्मसूत्र [305] का कहना है कि जब सूर्य एक राशि से दूसरा राशि में जाता है तो दोनों विषुवीय दिन, विशेषत: उत्तरायण एवं दक्षिणायन के दिन, व्यतीपात, कर्ता जन्म की राशि, पुत्रोत्पत्ति आदि के उत्सवों का काल-आदि काम्य काल हैं और इन अवसरों पर किया गया श्राद्ध (पितरों को) अनन्त आनन्द प्रदान करता है।
- विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं-(१) तिल जल स्नान, (२) तिल दान, (३) तिल भोजन, (४) तिल जल अर्पण, (५) तिल आहुति, (६) तिल उबटन मर्दन।
- विष्णु धर्मसूत्र [27] में आया है-” मृतात्मा श्राद्ध में ' स्वधा ' के साथ प्रदत्त भोजन का पितृलोक में रसास्वादन करता है ; चाहे मृतात्मा (स्वर्ग में) देव के रूप में हो, या नरक में हो (यातनाओं के लोक में हो), या निम्न पशुओं की योनि में हो, या मानव रूप में हो, सम्बन्धियों के द्वारा श्राद्ध में प्रदत्त भोजन उसके पास पहुँचता है ;