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सन्धिवात वाक्य

उच्चारण: [ sendhivaat ]

उदाहरण वाक्य

  1. उपवास-सभी पेट के रोग, श्वास, आमवात, सन्धिवात, त्वक विकार, मेदो वृद्धि आदि में विश् ोष उपयोग होता है।
  2. रूमेटिक, संधिशोथ, गठिया (आमवात व सन्धिवात), माइग्रेन, सर्वाइकल स्पोंटोलाइटिस, श्वास, अस्थमा, कैंसर आदि रोग इसी कोटि में रखे जाते हैं।
  3. यह पेट के कीड़े, दर्द, जोड़ों के दर्द (सन्धिवात), पेट में वायु की गांठ, कमर का दर्द और शारीरिक पीड़ा को दूर करती है।
  4. सन्धिवात के लक्षण हाथ व पैरों की अंगुलियों के जोड़ों, टखनों व घुटनों में सूजन होना, अकड़ आना और सुई चुभने जैसी पीड़ा होना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं।
  5. यह रोग विशेष रूप से गठिया या सन्धिवात के रोगी में अपच उत्पन्न होने पर अर्थात खाई हुई चीजों को ठीक से न पचा पाने के कारण हो सकता है।
  6. आयुर्वेद में भी इन तीनों (वायु कफ-पित्त) के बिगड़ने से ही सन्धिवात की बीमारी कहा है सो तुलसीदास जी ने कहा है ये ही तीनों दु: खदायक हैं।
  7. हानिकारक: टमाटर का उपयोग आमवात, अम्लपित, सन्धिवात (जोड़ों के दर्द), सूजन और पथरी के रोगियों को नहीं करना चाहिए क्योंकि यह उनके लिये हानिकारक होता है।
  8. दस्त, बदहजमी (भोजन का न पचना), अरुचि (भोजन का मन न करना) और सन्धिवात (जोड़ों का दर्द) में मेथी के लड्डूओं को सेवन किया जाता है।
  9. नीलम यह रत्न विषम ज्वर, मिरगी, मस्तिष्क की कमजोरी, पागलपन, हिचकी, गठिया, सन्धिवात, पेटदर्द, बेहोशी, पक्षाघात, बवासीर, हर्निया आदि रोगों पर उपयोग किया जाता है।
  10. सन्धिवात रोग, जिसे गठिया भी कहते हैं और ऐलोपैथिक भाषा में आर्थ्राइटिस कहते हैं, एक वात व्याधि है, जो कि आमवात रोग की स्थिति ठीक न हो पाने पर, इसके बाद उत्पन्न होने वाली स्थिति होती है।
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  1. सन्धिनी
  2. सन्धिपाद
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  7. सन्ध्या समय
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  9. सन्ध्यावन्दनम्
  10. सन्न
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