सांख्य शास्त्र वाक्य
उच्चारण: [ saanekhey shaasetr ]
उदाहरण वाक्य
- इस प्रसंग पर ध्यान देने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सांख्य शास्त्र में जीवात्मा, परमात्मा तथा प्रकृति-तीन तत्त्वों को मान्यता प्राप्त है।
- इस सांख्य शास्त्र के माध्यम से उन्होंने संसार के लोगों को बताया कि प्रकृति हर चीज को जन्म भी देती है और वही उसे मिटाकर अपनी गोद में छिपा लेती है।
- कहते हैं कपिल महर्षि ने सांख्य शास्त्र की रचना की तो बाद में अपनी माता देवहुति को सरस्वती नदी के तट पर सांख्य दर्शन सुनाया, जिसे सुनकर उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया।
- प्राकृतमन्न त्रिगुणभेद परिणामात्मान्महदाद्यं विशेषान्तं लिंगम्, आदि उपनिषदों में सांख्य सिद्धान्तों का मिलना इस बात का सूचक है कि सांख्य पर उपनिषत प्रभाव है और सांख्य शास्त्र का उपनिषदों पर प्रभाव है।
- इस संवाद को प्राचीन इतिहास के रूप में प्रस्तुत करते हुए पहले क्षर और अक्षर तत्त्व का भेद, वर्गीकरण, लक्षण आदि का उल्लेख करके योग का परिचय देने के उपरान्त सांख्य शास्त्र का वर्णन।
- इसे अतिरंजित कथन भी माना जाये तो भी, इतना तो स्पष्ट है कि महाभारत के रचनाकार के अनुसार तब तक वेदों के अतिरिक्त सांख्य शास्त्र और योग शास्त्र भी प्रतिष्ठित हो चुके थे और उनमें विचार साम्य भी है।
- उदयवीर शास्त्री ने अपने “सांख्य दर्शन का इतिहास” नामक ग्रंथ में (पृष्ठ 6) सांख्य शास्त्र के कपिल द्वारा प्रणीत होने में भागवत 3-25-1 पर श्रीधर स्वामी की व्याख्या को उद्धृत करते हुए इस प्रकार लिखा है-अंतिम श्लोक की व्याख्या करते हुए व्याख्याकार ने स्पष्ट लिखा है-तत्वानां संख्याता गणक:
- भावार्थ:-तत्वों का विचार करने में अत्यन्त निपुण जिन (कपिल) भगवान ने सांख्य शास्त्र का प्रकट रूप में वर्णन किया, उन (स्वायम्भुव) मनुजी ने बहुत समय तक राज्य किया और सब प्रकार से भगवान की आज्ञा (रूप शास्त्रों की मर्यादा) का पालन किया॥ 4 ॥
- उदयवीर शास्त्री ने अपने “ सांख्य दर्शन का इतिहास ” नामक ग्रंथ में (पृष्ठ 6) सांख्य शास्त्र के कपिल द्वारा प्रणीत होने में भागवत 3-25-1 पर श्रीधर स्वामी की व्याख्या को उद्धृत करते हुए इस प्रकार लिखा है-अंतिम श्लोक की व्याख्या करते हुए व्याख्याकार ने स्पष्ट लिखा है-तत्वानां संख्याता गणक: सांख्य-प्रवर्तक इत्यर्थ: ।
- आस्तिक वर्ग में न्याय, सांख्य, वैशेषिक, योग, पूर्व मिमांस, वेदान्त-ये 0 6 मार्ग विकशित हुए लेकिन धीरे-धीरे इनमें बदलाव आता गया / न्याय और सांख्य दोनों मार्गों को मिला दिया गया और सांख्य भी धीरे-धीरे लुप्त होता चला गया / भागवत की रचना द्वापर के अंत की है, भागवत में कहा गया है कि कपिल मुनि के रूप में भगवान का साकार रूप में आना हुआ मात्र लुप्त हुए सांख्य शास्त्र को पुनः स्थापित करनें हेतु /