आसफुद्दौला वाक्य
उच्चारण: [ aasefudedaulaa ]
उदाहरण वाक्य
- मुगल शासकों में, चाहे वह अकबर हो, शाहजहाँ हो या फिर आसफुद्दौला हो याबाजिदअली शाह, जिसके भी मन में नया कुछ कलात्मक सृजन करने की इच्छाजाग्रत होती थी तो उसका ध्यान सर्वप्रथम भवन-निर्माण की ओर जाता था.
- ऐसे भड़कीले भड़ौवे किसी ने नहीं बनाये। ' ' कविवर बेनी के जीवनवृत्त पर प्रकाश डालते हुए डा0 सूर्यप्रसाद दीक्षित ने लिखा है-“लखनऊ के नवाब आसफुद्दौला के अर्थमंत्री राजा टिकयतराय के दरबारी कवि बेनी इस नगर के गौरव रहे हैं।
- ऐसे भड़कीले भड़ौवे किसी ने नहीं बनाये। ' ' कविवर बेनी के जीवनवृत्त पर प्रकाश डालते हुए डा0 सूर्यप्रसाद दीक्षित ने लिखा है-“लखनऊ के नवाब आसफुद्दौला के अर्थमंत्री राजा टिकयतराय के दरबारी कवि बेनी इस नगर के गौरव रहे हैं।
- इसी हज़रतगंज के कोने में उन नवाब आसफ़ुद्दौला का मक़बरा है जो अपनी रियाया के लिए इतना दरियादिल थे कि यह कहावत आम फ़हम हो गयी कि-‘ जिसको ना दे मौला, उसको को दे आसफुद्दौला. '
- ऐसा भी माना जाता है कि 18वीं सदी की शुरुआत में अवध के नवाब शुजाउद्दौला और आसफुद्दौला के समय में अयोध्या ताीर्थ और पर्यटन का केद्र था लेकिन 1853 में समस्या पैदा हुई जब हिंदुओं के एक संप्रदाय निर्मोही ने दावा किया कि मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर था जिसे तोड़ा गया है।
- इंशा और जुर्रत की शायरी अवध की विलासिता से प्रभावित है, जब मुगलिया सल्तनत के कमज़ोर होने के कारण, बाहरी आक्रमणों, लूटपाट और नादिरशाही कत्ले-आम से दिल्ली उजड़ती जा रही थी, तो सौदा, मीर, सोज़, मुसहफी और इंशा को, वहाँ संरक्षण न मिलने के कारण लखनऊ जाना पड़ा था जो नवाब आसफुद्दौला के साथ विलासिता मं् डूबा पड़ा था।
- इंशा और जुर्रत की शायरी अवध की विलासिता से प्रभावित है, जब मुगलिया सल्तनत के कमज़ोर होने के कारण, बाहरी आक्रमणों, लूटपाट और नादिरशाही कत्ले-आम से दिल्ली उजड़ती जा रही थी, तो सौदा, मीर, सोज़, मुसहफी और इंशा को, वहाँ संरक्षण न मिलने के कारण लखनऊ जाना पड़ा था जो नवाब आसफुद्दौला के साथ विलासिता मं् डूबा पड़ा था।
- इंशा और जुर्रत की शायरी अवध की विलासिता से प्रभावित है, जब मुगलिया सल्तनत के कमज़ोर होने के कारण, बाहरी आक्रमणों, लूटपाट और नादिरशाही कत्ले-आम से दिल्ली उजड़ती जा रही थी, तो सौदा, मीर, सोज़, मुसहफी और इंशा को, वहाँ संरक्षण न मिलने के कारण लखनऊ जाना पड़ा था जो नवाब आसफुद्दौला के साथ विलासिता मं् डूबा पड़ा था।
- ले अबीर और अरगजा भरकर रुमाल छिड़कते हैं और उड़ाते हैं गुलाल ज्यूं झड़ी हर सू है पिचकारी की धार दौड़ती हैं नारियाँ बिजली की सा र उर्दू शायरी के स्वर्णिम युग के मशहूर शायर मीर की होली पर एक कृति है ' साकी नाम होली', जिसमें शायर का उन्माद और होली की उन्मुक्तता अधिक मुखरित हुई है-आओ साकी, शराब नोश करें शोर-सा है, जहाँ में गोश करें आओ साकी बहार फिर आई होली में कितनी शादियाँ ला ई आसफुद्दौला के समय में मीर लखनऊ में थे।