उपपुराण वाक्य
उच्चारण: [ upepuraan ]
उदाहरण वाक्य
- कुछ लोगों का कहना है कि वायुपुराण ही शिवपुराण है क्योंकि आजकल जो शिवपुराण नामक पुराण या उपपुराण है उसकी श्लोक संख्या २४, ००० नहीं है, केवल ७,००० ही है ।
- इस पुराण में अध्याय 69 तथा श्लोक संख्या 3, 799 है, सौरपुराण अपने को ब्रह्मांडपुराण का “खिल” अर्थात् उपपुराण कहता है एवं सनत्कुमारसंहिता और सौरीसंहिता रूप दो भेदों से युक्त मानता है (9* 13-14)।
- इस पुराण में अध्याय 69 तथा श्लोक संख्या 3, 799 है, सौरपुराण अपने को ब्रह्मांडपुराण का “खिल” अर्थात् उपपुराण कहता है एवं सनत्कुमारसंहिता और सौरीसंहिता रूप दो भेदों से युक्त मानता है (9* 13-14)।
- अतः एक ओर तोपुराणों की संख्या अधिक हो गई जिनमें १८ महापुराण १८ उपपुराण और कितने हीलघुपुराण शामिल हैं और दूसरी ओर अन्य मतों के विद्वानों द्वारा उन्हें केवलकाल्पनिक, मनघड़न्त तथा निराधार माना जाने लगा.
- वेद-से उपनिषदों तक संस्कृति की यात्रा को पूरा न मानकर वेद-उपनिषद सूत्रग्रंथ, स्मृति, पुराण, उपपुराण, निबंध, ग्रंथों के रूप में ग्रंथों की पहचान करना एवं उनके क्षेत्रीय स्वरूप को समझना।
- देवर्षि नारद जी के द्वारा रचित अनेक ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है ः-जिसमें प्रमुख हैं नारद पंचरात्र, नारद महापुराण, वृहन्नारदीय उपपुराण, नारद स्मृति, नारद भक्ति सूत्र, नारद परिव्राजकोपनिषद् आदि।
- कुछ लोगों का कहना है कि वायुपुराण ही शिवपुराण है क्योंकि आजकल जो शिवपुराण नामक पुराण या उपपुराण है उसकी श्लोक संख्या २ ४, ००० नहीं है, केवल ७, ००० ही है ।
- पुराणों को निम्नलिखित चार श्रेणियों में विभक्त किया गया है-* महापुराण-प्रमुख पुराण, * उपपुराण-अन्य पुराण, * स्थलपुराण-विशिष्ट स्थलों से संबंधित पुराण और * कुलपुराण-वंशों से संबंधित पुराण।
- नारद जी का अनेक ग्रंथों में वर्णन प्राप्त होता है तथा नारद जी के ज्ञान संबंधी अनेक धर्म ग्रंथ देखे जा सकते हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-नारद पांचरात्र, नारद महापुराण, नारद के भक्तिसूत्र, नारद-परिव्राजकोपनिषद, बृहन्नारदीय उपपुराण संहिता अट्ठारह महापुराणों में एक नारदोक्त पुराण, बृहन्नारदीय पुराण के नाम से विख्यात है.
- जहाँ पंडित लोग विद्यार्थियों को ऋक्, यजुः साम, अथर्व, महाभारत, रामायण, पुराण, उपपुराण, स्मृति, न्याय, व्याकरण, सांख्य, पातंजल, वैशषिक, मीमांसा, वेदांत, शैव, वैष्णव, अलंकार, साहित्य, ज्योतिष इत्यादि शास्त्रा सहज पढ़ाते हुए मूर्तिमान गुरु और व्यास से शोभित काशी की विद्यापीठता सत्य करते हैं।