काव्य प्रयोजन वाक्य
उच्चारण: [ kaavey peryojen ]
उदाहरण वाक्य
- काव्य प्रयोजन (भाग-2) संस्कृत के आचार्यों के विचार पिछले पोस्ट काव्य-सृजन का उद्देश्य में हमने यह चर्चा की थी कि सृजन कर्म आनंद का सृजन करे, ऐसा आनंद जो लोकमंगलकारी हो।
- इस प्रकार हम देखते हैं कि आचार्यों द्वारा निरूपित काव्य प्रयोजन में यश और अर्थ तो मूलतः कवि को प्राप्त होते हैं, पर बाकी के जो चार उद्देश्य हैं वह तो सहृदय को ही मिलते हैं।
- प्रथम परिच्छेद में काव्य प्रयोजन, लक्षण आदि प्रस्तुत करते हुए ग्रंथकार ने मंमट के काव्य लक्षण “ तददोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुन: क्वापि ” का बड़े संबंभ के साथ खंडन किया है और स्वरचित लक्षण वाक्यम् रसात्मकम् काव्यम् को ही शुद्धतम काव्य लक्षण प्रतिपादित किया है।
- आधुनिक हिन्दी काव्य के पुरोधा, मिट्टी की सुगंध के अमर गायक, प्राची के आलोकधन्वा और युगधर्म की हुंकार राष्ट्रकवि स्वर्गीय रामधारी सिंह ‘दिनकर' का ‘रश्मिरथी' कथावस्तु, शील निरुपण और संवाद योजना की दृष्टि से एक लब्ध प्रतिष्ठित प्रबंध काव्य ही नहीं अपितु काव्य प्रयोजन की दृष्टि से भी स्वयं युगधर्म की हुंकार माना जा सकता है।
- प्रथम उल्लास में मंगलाचरण के बाद कविसृष्टि की विशेषताएँ, अनुबंध, काव्य के प्रयोजन, उपदेश की त्रिविध शैली के विषय में बात करते हुए वे मयूरभट्ट, वामन, भामह तथा कुंतक के प्रयोजनों का विश्लेषणात्मक अध्ययन करते हैं, कवि तथा पाठक या श्रोता की दृष्टि से काव्य का प्रयोजन के विषय में चर्चा करते हैं तथा भरतमुनि के काव्य प्रयोजन स्पष्ट करते हैं।
- 22 काव्य रचना के सहायक तत्व है-वर्ण्य विषय (भाव), अभिव्यक्ति पक्ष (कला), आत्म पक्ष 23 मम्मट के काव्य प्रयोजन है-यश, अर्थ, व्यवहार ज्ञान, शिवेतरक्षति, संघ पर निवृति, कांता सम्मलित 24 मम्मट के शिवेतर का अभिप्राय है-अनिष्ट 25 सगुणालंकरण सहित दोष सहित जो हो ई...