कुन्दनलाल सहगल वाक्य
उच्चारण: [ kunednelaal shegal ]
उदाहरण वाक्य
- ‘ निस दिन बरसत नैन हमारे... ', ‘ मैं नहीं माखन खायो... ' और ‘ मधुकर श्याम हमारे चो र... ' जैसे प्रचलित पदों को कुन्दनलाल सहगल ने अपना भावपूर्ण स्वर दिया था।
- हुआ यह कि गायक शिरोमणि कुन्दनलाल सहगल किसी कारणवश बिना स्क्रिप्ट के अपनी धुन में इसे यूँ गा गये ‘ अँगना तो पर्वत भया देहरी भई बिदे स... ' और उनकी गायी यह ठुमरी कालजयी हो गई।
- उनके प्रशंसकों की फ़ेहरिस्त ख़ासी लम्बी हुआ करती थी जिसमें कुन्दनलाल सहगल, सोहराब मोदी, जिगर मुरादाबादी से लेकर महात्मा गांधी, पं मदन मोहन मालवीय से लेकर राममनोहर लोहिया और इन्दिरा गांधी जैसी हस्तियां शुमार हैं.
- सबसे अच्छा लगा दीपावली के दिन कार्यक्रम की समाप्ति खेमचन्द प्रकाश के स्वरबद्ध किए, तानसेन फ़िल्म के कुन्दनलाल सहगल के इस गीत से करना-दिया जलाओ जगमग जगमग7:30 बजे संगीत सरिता में गायिकी अंग का गिटार श्रृंखला समाप्त हुई।
- यह मुकेश जी का सौभाग्य था की उनको भी अपने आराध्य कुन्दनलाल सहगल की तरह उस दौर में गायक-अभिनेता बनने का मौका मिल गया और साथ ही उनको अपनी ज़िन्दगी का पहला एकल गीत-‘ दिल ही बुझा हुआ हो तो...
- यह भी कहा जाता है कि लाहौर में उनकी मुलाकात प्रसिद्ध गायक, अभिनेता कुन्दनलाल सहगल से हुई थी, जो उनकी प्रतिभा को पहचानकर उन्हें फिल्मों में काम करने के लिए मिनर्वा मूवीटोन के मालिक निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी के पास मुम्बई लाए।
- न्यू थिएटर्स ' ने 1932 में जिन तीन फ़िल्मों के माध्यम से संगीतकार रायचन्द्र बोराल और गायक-अभिनेता कुन्दनलाल सहगल को फ़िल्म-संगीत में उतारा, वो हैं-‘ मोहब्बत के आँसू ', ‘ सुबह का सितारा ' और ‘ जिन्दा लाश ' ।
- अपने मोबाइल में जब एमपी 3 गाने सुनता हूँ तो मुझे वो पुराना ग्रामोफोन और लाख का तवा याद आता है जिस पर डायफ्रॉम में लगी सुई खिसकते रहती थी और भोंपू से कुन्दनलाल सहगल जी की मधुर आवाज निकल कर मुग्ध किया करती थी।
- देहरी भई बिदेस भी ऐसा ही उद्धरण है जो कभी था नहीं, किन्तु सुप्रसिद्ध गायक कुन्दनलाल सहगल द्वारा गाई गई कालजयी ठुमरी में भ्रमवश इस प्रकार गा दिये जाने के कारण ऐसा फैला कि इसे गलत बतलाने वाला पागल समझे जाने के खतरे से शायद ही बच पाये।
- कुन्दनलाल सहगल साहब से बहुत गहरे प्रभावित सी. एच. यानी चन्द्रू आत्मा ने अपने कैरियर का आग़ाज़ा १ ९ ४ ५ में किया था. ओ. पी. नैयर के संगीत निर्देशन में गाई गई उनकी रचना “ प्रीतम आन मिलो ” ने उन्हें सबसे ज़्यादा ख्याति दी.