कुशध्वज वाक्य
उच्चारण: [ kushedhevj ]
उदाहरण वाक्य
- शतानन्द जी जनवासे में महाराज दशरथ के पास पहुँचे और उनसे आदरपूर्वक बोले, ” महाराजाधिराज! मिथिला नरेश महाराज जनक अपने कनिष्ठ भ्राता कुशध्वज, परिजनों एवं समस्त मन्त्रियों के साथ आपके दर्शनों के लिये उत्सुक हैं और अपने दरबार में आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
- सुखद संयोग की तरह-दूसरा सन्देसा मिला मन्थरा के ही द्वारा-कि क्षीरध्वज-महाराज जनक-के अनुज कुशध्वज ने भेजा प्रस्ताव था अयोध्या में उनकी तीनों पुत्रियों माण्डवी, उर्मिला और श्रुतिकीर्ति बँध जाएँ वैवाहिक बन्धन में भरत, लखन, शत्रुघन से, और उसे महाराज दशरथ ने दे दी है स्वीकृति भी!
- सुखद संयोग की तरह-दूसरा सन्देसा मिला मन्थरा के ही द्वारा-कि क्षीरध्वज-महाराज जनक-के अनुज कुशध्वज ने भेजा प्रस्ताव था अयोध्या में उनकी तीनों पुत्रियों माण्डवी, उर्मिला और श्रुतिकीर्ति बँध जाएँ वैवाहिक बन्धन में भरत, लखन, शत्रुघन से, और उसे महाराज दशरथ ने दे दी है स्वीकृति भी!
- तुम्हारे पिता एवं पति कौन हैं? किस फल की प्राप्ति के लिए तुम यह कठोर टाप कर रही हो? रावण के इस प्रकार पूछने पर उस यशस्वी तपस्विनी ने अपनी कोमल वाणी में रावण से कहा, ” राजन! देवगुरु बृहस्पति के परम तेजस्वी पुत्र ब्रह्मर्षि कुशध्वज मेरे पिता जी थे.
- रावण द्वारा उनका परिचय पूछे जाने पर वे कहती हैं-' ' कुशध्वज जो........ राक्षस पुंगव् '' [श्लोक ८-१ ७, उत्तरकांडे पृष्ठ-६ ४ ३, सप्तदश: सर्ग:] [अमित तेजस्वी ब्रह्म ऋषि श्रीमान कुशध्वज मेरे पिता थे, जो ब्रहस्पति के पुत्र थे और बुद्धि में भी उन्ही के समान माने जाते थे.
- रावण द्वारा उनका परिचय पूछे जाने पर वे कहती हैं-' ' कुशध्वज जो........ राक्षस पुंगव् '' [श्लोक ८-१ ७, उत्तरकांडे पृष्ठ-६ ४ ३, सप्तदश: सर्ग:] [अमित तेजस्वी ब्रह्म ऋषि श्रीमान कुशध्वज मेरे पिता थे, जो ब्रहस्पति के पुत्र थे और बुद्धि में भी उन्ही के समान माने जाते थे.
- ब्रह्म वैवर्त पुराण में राजा कुशध्वज की पुत्री जिस तुलसी का शंखचूड़ से विवाह आदि का वर्णन है, तथा पृथ्वी लोक में हरिप्रिया वृन्दा या तुलसी जो वृक्ष रूप में देखी जाती हैं-ये सभी सर्वशक्तिमयी राधिका की कायव्यूहा स्वरूपा, सदा-सर्वदा वृन्दावन में निवास कर और सदैव वृन्दावन के निकुंजों में युगल की सेवा करने वाली वृन्दा देवी की अंश, प्रकाश या कला स्वरूपा हैं।
- वृहस्पति के पुत्र महर्षि कुशध्वज की पुत्री सौंदर्यवती पर रावण का मोहित होना व उसका कौमार्यभंग करने को उद्धत होना, नलकुबेर की प्रेयसी अप्सरा रंभा के साथ दुराचार करना यही दो कार्य रावण को खलनायक सिद्ध करने के लिए पौराणिक आख्यान बने बाद में रंभा का सीता के रूप में अवतरण व सीता का, (सूर्पनखा के नाक कान कटने की प्रतिशोधी ज्वाला के कारण) हरण नें रावण को महापातकी सिद्ध कर दिया ।