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गूगल पे वाक्य

उच्चारण: [ gaugal p ]

उदाहरण वाक्य

  1. कोई गाना सुन रही होती हूँ तो उसमें भी किरदार की जगह तुम ले लेते हो … कोई इमेज सर्च करती हूँ गूगल पे तो तुम्हारी यादें घेर लेती हैं आ के … तुमसे मिलने के बाद आज तक कभी अकेले चाय-कॉफ़ी नहीं पी पायी हूँ … कप से पहला सिप हमेशा तुम लेते हो …
  2. NBT (नव भारत टाइम) से भी मैं जुड़ा रहा, वहाँ से भी कोई शिकायत नहीं है मुझे,,,, मगर कुछ लोगो ने गूगल पे अपने ब्लॉग बनाये है जहा आपको भी आमंत्रण दिया जाता है, और फिर ऐसा होता है,,,, मुझे ऐसे मंच और ऐसे लोगो की उम्मीद नहीं थी …………..
  3. अगर ऐसा ही हाल रहा और हम ऐसे ही आश्रित रहे गूगल पे तो जरा सोचिये की आने वाले जेनेरसन पर क्या असर परेगा, एक तो वैसे ही आज के कुछ आधुनिक बच्चे अपने देश के इतिहास के बारे में कम और दूसरे देश के बारे में ज्यादा जानते हैं, अपने देश के शहीदों से ज्यादा उनके पास जानकारी माइकल जैक्सन की है.
  4. लिखते रहे हैं | हमने कई जवाब भी दिए पर वो कहाँ सुननेवाले! गूगल पे हिंदी मैं सर्च करो तो वही स्वच्छता वाले (वास्तव मैं अस्वच्छ) सलीम खान ही सबसे आगे आते हैं और उसका कोई सही जवाब देता हुआ ब्लॉग नहीं मिला | इसलिए सोचा के झूठे प्रचार का जवाब देना ही चाहिए | मैं संस्कृत का ज्ञानी नहीं इसलिए संस्कृत शब्दों और श्लोकों के अर्थ के लिए उचित
  5. आप तो अपने हैं इसलिए बता रहा हूँ मैंने इन पहेलियों से निपटने के लिए ख़ास जुगाड़ किया हुआ है-आप भी पार्ट टाईम पेमेंट पर सात बंदों को नियुक्त कर लो अब 35 स्टेट्स हैं हर एक को पांच स्टेट थमा दो वो पहले से गूगल पे मंदिर मस्जिद, तीर्थ स्थल, पर्यटन स्थल के पेज खोल के बैठे होंगे बस पहेली प्रकाशित होते ही धर लो जी-इसके अतिरिक्त मध्य ऊँगली में गोमेद का धारण अवश्य करें!
  6. आप तो अपने हैं इसलिए बता रहा हूँ मैंने इन पहेलियों से निपटने के लिए ख़ास जुगाड़ किया हुआ है--आप भी पार्ट टाईम पेमेंट पर सात बंदों को नियुक्त कर लो अब 35 स्टेट्स हैं हर एक को पांच स्टेट थमा दो वो पहले से गूगल पे मंदिर मस्जिद, तीर्थ स्थल, पर्यटन स्थल के पेज खोल के बैठे होंगे बस पहेली प्रकाशित होते ही धर लो जी-इसके अतिरिक्त मध्य ऊँगली में गोमेद का धारण अवश्य करें!
  7. येही लालसा धीरे धीरे इंद्रजाल, और फिर कहाँ से कहाँ पहुच गयी.मृतुन्जय के कथानक “पूर्वी अंचल ” “ देवता जाल ” को मैंने इन्ही स्ट्रिप में पढ़ा था.दीवाना में मृतुन्जय पुरे एक पन्ने में प्रकाशित होता था सो पढने को कुछ जयादा मिलता था.मनोज 'बाबा रामदेव ' एक अच्छी कॉमिक्स थी | उस समय इस तरह की और नंदन, चंदामामा जैसी पत्रिकाए पढ़कर भारत के इतिहास और धर्म के बारे में काफी पता रहता था.अब तो सब गूगल पे सिमट के रह गए है ये जानने के लिए.मजे की बात..
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